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एक बुढ्ढे का तबीब से शिकायत-ए-मरज़ करना और तबीब का जवाब देना- दफ़्तर-ए-दोउम

रूमी

एक बुढ्ढे का तबीब से शिकायत-ए-मरज़ करना और तबीब का जवाब देना- दफ़्तर-ए-दोउम

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    रोचक तथ्य

    अनुवादः मिर्ज़ा निज़ाम शाह लबीब

    एक बूढ़े शख़्स ने तबीब से कहा कि मैं ज़ो’फ़-ए-दिमाग़ में मुब्तला रहता हूँ। तबीब ने कहा कि ये ज़ो’फ़-ए-दिमाग़ बुढ़ापे के सबब से है। फिर उसने कहा कि मेरी आँख में धुँदला-पन गया है। तबीब ने जवाब दिया कि मर्द-ए-बुज़ुर्ग ये भी बुढ़ापे से है। उसने कहा कि मेरी कमर में दर्द रहता है। तबीब ने कहा ये भी बुढ़ापे की वजह से है। फिर उसने शिकायत की कि खाना हज़्म नहीं होता। तबीब ने कहा ज़ो’फ़-ए-मे’दा भी बुढ़ापे की अ’लामत है।फिर बूढ़े ने कहा कि मेरा सांस रुक कर चलता है।

    तबीब ने कहा कि हाँ जब बुढ़ापा आता है तो सौ बीमारीयाँ पैदा हो जाती हैं यहाँ तक कि सांस भी रुक जाता है। फिर उसने कहा कि मेरे पांव बेकार हो गए,चला नहीं जाता।तबीब ने कहा कि मेरी कमर दुहरी हो गई।उसने जवाब दिया कि ये भी ज़ई’फ़ी से हुई है। आख़िर-कार झुँझला कर बूढ़े ने कहा कि अहमक़ तू एक ही बात रटे जाता है, क्या फ़न-ए-तबाबत में तूने बस यही सीखा है। अरे बद-दिमाग़!ख़ुदा ने हर दर्द की दवा मुक़र्रर की है। तू अहमक़ गधा अपनी ना-वाक़फ़ियत की वजह से ज़मीन पर पड़ा लोट रहा है।

    पस तबीब ने जवाब दिया कि पीर-ए-फ़र्तूत ये तेरा ग़ुस्सा भी बुढ़ापे के सबब है। जब सब अज्ज़ा-ओ-आ’ज़ा कमज़ोर हो गए तो सब्र-ओ-ज़ब्त की क़ुव्वत भी कम हो गई। जिसे बात की बर्दाश्त नहीं होती वो गर्म-आवाज़ निकालता है और चूँकि एक घोंट पचा नहीं सकता उसे क़ै हो जाती है हाँ मगर वो बूढ़ा जो हक़ का मतवाला है उस के अंदर पाक ज़िंदगी है ऐसा शख़्स ज़ाहिर में बूढ़ा और बातिन में बच्चा है। वली-ओ-नबी कैसे होते हैं? ऐसे ही होते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिकायात-ए-रूमी हिस्सा-1 (पृष्ठ 92)
    • प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द) (1945)

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