कहानी -10-परवरिश- गुलिस्तान-ए-सा’दी
एक फ़क़ीर की पत्नी गर्भवती थी। फ़क़ीर को कोई पुत्र नहीं था। जब प्रसव का समय निकट आया वो वह कहने लगा, अगर अल्लाह तआ’ला लड़का दे, तो मैं इस गुदड़ी के अ’लावा, जो कुछ धन मेरे पास है। मैं बाँट दूँगा।
फ़क़ीर के घर लड़का ही पैदा हुआ। उसने अपने वा’दे के अनुसार फ़क़ीरों को दा’वत दी।
कुछ साल बा’द जब मैं शाम के सफ़र से लौटा तो उस दोस्त के मुहल्ले से गुज़रा। मैंने लोगों से उसका हाल-चाल पूछा। लोगों ने बताया कि वह फ़क़ीर तो अब कोतवाल शहर की क़ैद में है।
मैंने पूछा, इसका संबंध क्या है? लोगों ने बताया कि उसके बेटे ने शराब पीकर दंगा किया और किसी को क़त्ल करके शहर से भाग गया है। उसी की वजह से बाप के गले में तौक़ और पैरों में भारी बेड़िया डाल दी गईं है।
मैंने कहा, इस बला को तो उसने अल्लाह तआ’ला से बड़ी मिन्नतें करके माँगा था!
'ऐ होशियार मर्द! औ’रतें अगर बच्चों की जगह साँप जने तो अ’क़्लमन्दों की राय में, यह ना-लायक़ लड़कों को जन्म देने से कहीं अच्छा होगा।'
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