।। हिंडोलना ।।
अनंग हींडोलनौ हींडै हरि के दास।
अनंग हींडोलनौ हींडै हरि के दास।
अधिक रूप उछाह आनंद, सबकी पुरवै आस।।
अधिक रूप उछाह आनंद, सबकी पुरवै आस।।
पांच तीन पचीस प्रकृति, काम क्रोध दोऊं नांहि।।
मन मनसा नाद बिंद, मिलि रहै एकैं ठांइ।।
अधर खंभ अगाध अनभै, प्रेम प्रीति ल्यौ डोरि।।
नवरंग नवल किसोर नागर, रहै हरि सूं जोरि।।
बमेक बादल बिवोग बिजुरा, स्वांति बूंद बरखाइ।।
चाहै चात्रिग लवै सदई, घरहरै घन आइ।।
नांव नग जड़ाव झिलिमिलि, परम ज्यौति अपार।।
अपार खेलै आतमरांम सू मिलि, सांज्या सोडि सिंगार।।
इंगला पिंगुला गंगा जमुनां, सुरसती समभाइ।।
त्रिबेनि तटि अकल तरवर, तहां रहे लुभाइ।।
जहां गगन मंझ जिलिमिलितारी, चतुर दशवैं द्वार।।
अरस परस दोऊँ मिले मंगल, रमै प्रभु पति नारि।।
जहां रैनि धौसन तरंग तारा, अगम आनंद रूप।।
नूर निरमल मुक्ति माधौ, जहां छांह न धूप।।
समाधि सागर भरयौ लालनि, मंझु मोती हीर।।
हंस खेलैं चुगह चंचु बिन, महा अमीरस हीर।।
परम सुख परमांन परमल, सरस सुगंध सनेह।।
अघटा घटा घटा घट घट, निराकार निज देह।।
जहां जोग ध्यांन निबांन नहचल, सब संतन बिसराम।।
जगजीवन जन देव निरंजन, अमर अखंडित स्यांम।।
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