गुन झूलनाः उपदेस के अंग का
अरथ धरम कांम मोछि, दैत राजा रांम।
रे नर सोबत कहा जागि, बौरे भौजल तै भागि।।
तजहु आंन आस, भजहु भाव सहित तास।
ताकौ तिहुँ लोक नांव, नरहि दैत अजब ठांव।।
सब दुनिया दै पीठि, दरिस देखहि ज्यौं जीठि।
सु पिय दूरि नहीं पास, जैसैं फूलनि महि बास।।
इकु रांम नांम सति, कहत सुनत होत गति।
गरब श्रब सौंज त्यागि, सु तूँ रांम नांम लागि।।
जिहि दीयै नैंन बैंन, खांन पांन चित चैंन।
चरन चांपि करहु सेव, सु तौ देवनि कौ देव।।
कहा बैसि रहयौ पाँच, कछू क्यौं न करै सोच।
तेरौ संग गयौ दूरि, चलहु पंचनि कौ चूरि।।
लीजै हरि नांम, जातै सरहि सकल कांम।
कीजै आंन की न सेव, सु तौ देवनि कौ देव।।
जपिये जगदीस, अबहि सेत भयौ सीस।
सुनत करत हाइ हाइ, लोका जाइ जनम जाइ।।
करि साहिब स्यौ नेह, बौरे बिनसि जैहै देह।
दिखि परयौ भौ जल माँझ, सु तोहि सुनत भोर साँझ।।
सीस कहूँ पाइ, कहा परयौ गोता खाइ।
खसम क्यौं न करतु आइ आदि, जनमु जातु है सुबादि।।
अनु धनु नहीं वोर, अंति साहिब कौं चेर।।
चरन रहयौ न चितु लगाइ, सु नर क्यूँ न खता खाइ।।
लै रांम नांम ऐकु, कहा करत मूढ टेकु।
टका चारि तौ किहि कांम, जाति पंचनि महि मांम।।
यहु सकल सुख त्यागि, तुरत परगट देखि आगि।
अबहि उलटि अमी पीव, अमर होई जुगनि जीव।।
अप तेज बाइ, प्रिथी उपजि कैं समाइ।
सु तन रूहिर मांस अस्त, कहा मूढ़ भये मस्त।।
यहु दुनियां सब धंध, धनी धाई रे सु अंध।
कहा देखि रहयौ भूलि, भ्रमत जिन बैसि फूलि।।
जे मीर मलिक खांन पांन, दरिगह दीवान।
दुनीं लै न चलै सथु, सू तूं देखि दोऊँ हथु।।
बिषै बहै जातु जीव, जप्यौ नहीं नैंकु न पीव।
जनम गयो जुवा हारि, जिनिहि दैत दुनीं गारि।।
कलि अमर नहीं कोइ, तहाँ हस्तु है दैइ रोइ।
सुजरि जांनु जैसैं कखु, रहत नैंक हौं न रखु।।
हौं बकहूँ नितु, कछू क्यौं न करहि च्यंतु।
कहा मूढ़ रह्यौ सोइ, सु तौ जीवन दिन दोइ।।
खाहु कछु खुलाव, अबहि अलप रही आव।
धन सु धरयौ धूरि होइ, संगु लै न जातु कोई।।
बाजीद बिकट बाट, आगैं, पुर न पटन हाट।
अबहि इहै भलौ दाव, कछू संबलौ चलाव।।
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