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Sufinama

मूंह आई बात ना रहन्दी ए

बुल्ले शाह

मूंह आई बात ना रहन्दी ए

बुल्ले शाह

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    झूठ आखां ते कुझ बचदा सच्च आख्यां भांबड़ मचदा ए,

    जी दोहां गल्लां तों जचदा जच जच के जेहवा कहन्दी

    मूंह आई बात ना रहन्दी

    जिस पाइआ भेत कलन्दर दा, राह खोज्या आपने अन्दर दा,

    उह वासी है सुक्ख मन्दर दा, जिथे कोई ना चढ़दी लहन्दी

    मूंह आई बात ना रहन्दी

    इक लाज़म बात अदब दी सानूं बात मलूमी सभ दी ए,

    हर हर विच सूरत रब्ब दी किते ज़ाहर किते छुपेंदी

    मूंह आई बात ना रहन्दी

    एथे दुनियां विच अन्हेरा इह तिलकन बाज़ी वेहड़ा ए,

    वड़ अन्दर वेखो केहड़ा क्युं खफ़तन बाहर ढूंडेदी

    मूंह आई बात ना रहन्दी

    एथे लेखा पायों पसारा इहदा वखरा भेत न्यारा ए,

    इह सूरत दा चमकारा जिवें चिनग दारू विच पैंदी

    मूंह आई बात ना रहन्दी

    किते नाज़ अदा दिखलाईदा, किते हो रसूल मिलाईदा,

    किते आशक बण बण आईदा, किते जान जुदाई सहन्दी

    मूंह आई बात ना रहन्दी

    जदों ज़ाहर होए नूर हुरीं, जल गए पहाड़ कोह-तूर हुरीं,

    तदों दार चढ़े मनसूर हुरीं, ओथे शेखी पेश ना वैंदी

    मूंह आई बात ना रहन्दी

    जे ज़ाहर करां इसरार ताईं, सभ भुल्ल जावन तकरार ताईं,

    फिर मारन बुल्ल्हे यार ताईं, एथे मख़फ़ी गल्ल सोहेंदी

    मूंह आई बात ना रहन्दी

    असां पढ़आ इलम तहकीकी ओथे इको हरफ़ हकीकी ए,

    होर झगड़ा सभ वधीकी ऐवें रौला पा पा बहन्दी

    मूंह आई बात ना रहन्दी शाह अकल तूं आया कर, सानूं अदब अदाब सिखाइआ कर,

    मैं झूठी नूं समझाइआ कर, जो मूरख माहनूं कहन्दी

    मूंह आई बात ना रहन्दी

    वाह वाह कुदरत बेपरवाही देवे कैदी दे सिर शाही ए,

    ऐसा बेटा जाइआ माई सभ कलमा उस दा कहन्दी

    मूंह आई बात ना रहन्दी

    इस आज़िज़ दा की हीला रंग ज़रद ते मुक्खड़ा पीला ए,

    जिथे आपे आप वसीला ओथे की अदालत कहन्दी

    मूंह आई बात ना रहन्दी

    बुल्ल्हा शहु असां थीं वक्ख नहीं, बिन शहु थीं दूजा कक्ख नहीं,

    पर वेखन वाली अक्ख नहीं, ताहीं जान जुदाईआं सहन्दी

    मूंह आई बात ना रहन्दी

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