सुन यार पुरानी पीड़ वो
रोचक तथ्य
इह काफ़ी हीर दी ज़बानी लिखी है, जेहड़ी रांझे दी आशक सी
सुन यार पुरानी पीड़ वो
थियाँ अक्खियाँ छल गई दिलड़ी जल
काँह कुमाणीं उजड़ियाँ झोकाँ
सख़्त स्यालीं करदियाँ टोका
रहंदी दिल दिल-गीर वो
सर दर्द उटल पए रोग उछल
लगड़ा नेंह रंझेटे वाला
विसर्या फ़हम फ़िकर दा चाला
हीर गई झंग चीर वो
सट सेझ पलंग ते रंग-महल
भोगे मूल न दुश्मन जाई
जो जो सख़्ती मैं सिर आई
मारिम मा पिउ वीर वो
वल संगियाँ सुरतियाँ लहम न कल
चाक महींदा आ वड़ वेहड़े
खेड़े भैड़े रक्खन बखेड़े
कपड़े लीर कतीर वो
गया हार-सिंगार मुसाग कजल
नाज़ुक नाज़ निगाह सजन दे
इश्वे ग़म्ज़े मन-मोहन दे
लगड़े कारी तीर वो
सै सीने पल-पल चुभदे फल
औखे लाघे रोह जबल दे
छल छल छाले पैर पचलदे
रुलदी राह मल्हेर वो
जिथ राखस डैनीं पौवन दहल
सस्सी शोदी पैर प्यादी
ना तिड़ ताडे झोक आबादी
मुठड़ी बे-तक़सीर वो
ना ख़र्च पल्ले ना गंढ समल
माही बाझों सूल क़हर दे
डेहाँ रात 'फ़रीद' नज़र दे
नैनाँ नीर वहीर वो
झर जंगल बेले छल्ले-छल
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