अन्त की याद- मकड़ी जाला पूर 2 के कितने जीव सताती है।
अन्त की याद- मकड़ी जाला पूर 2 के कितने जीव सताती है।
हकीम हाजी अली ख़ान
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मकड़ी जाला पूर पूर के कितने जीव सताती है।
मक्खी मच्छड़ एक न छोड़े भुनगे तक को खाती है।।टेक।।
कुटल स्वभाव पड़े तरुणाई वह सुध अपनी खोता है।
काल गाल में फंसि के मूरख अन्त समय फिर रोता है।।
मकड़ी की लखि नीच वृत्ति को तू वैसा क्यों होता है।
करजुग है यह नही हैं कलिजुग फिर भी तू इत सोता है।।
खटमल पिस्सू बचें न इससे ऐसा जाल बिछाती है।
मक्खी मच्छड़ एक न छोड़े भुनगे तक को खाती है।।
यही दशा हो रही हमारी जरा नहीं है दिल में ज्ञान।
बुरा कर्म कोई एक न छोड़ा नहीं अन्त का किया ध्यान।।
अपना स्वारथ करन हेतु हम दुग्धी किये कितनों के प्राण।
तापर रटन लगे स्वामी को कहो कैसे होवे कल्याण।।
पहिले धारा सांच हिये नहीं अब क्यों शोर मचाती है।
मक्खी मच्छड़ एक न छोड़े भुनगे तक को खाती है।।
सोच काल जब आता सिरपर तब प्राणी पछताता है।
कुछ भी नेकी हुई न हम से हाय प्राण अब जाता है।।
दान धर्म कुछ किया न हमने बिगड़ी कौन बनाता है।।
हाय नीम के पेड़ बोय अब आम कहां से पाता है।।
जब आता है समय अन्त का मल के हाथ रह जाती है।
मक्खी मच्छड़ एक न छोड़े भुनगे तक को खाती है।।
मकड़ी माया जान जगत को हिये सभ्य जन करो विचार।
जब आता है अंत समय तब रो रोके सब करें पुकार।।
हाय बुद्धि कैसी बौरानी अब तो जीवित पै पड़ी कुठार।
बिन प्रभु भजन किये ते प्राणी नहीं तेरा होवे उद्धार।।
'हाजी अली' न सोचा पहिले अब तबियत घबराती है।
मक्खी मच्छड़ एक न छोड़े भुनगे तक को खाती है।।
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