आज और कल- दया सिन्धु की दया प्राप्त कर हुए अगर तु धन शाली।
आज और कल- दया सिन्धु की दया प्राप्त कर हुए अगर तु धन शाली।
सय्यद अमीर अली मीर
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दया सिन्धु की दया प्राप्त कर हुए अगर तु धन शाली।
बनो बिनत पाओगे शोभा जैसी अली फल वाली।।
महालसी हाकर हे भाई कभी न अपयश सिर लेना।
कल की बात त्याग शुभ कृति में दान आज ही दे देना।।
यदि विचार के प्रौढ़ पने से न्यायाधिप का पद पाओ।
तो तुम हंस न्याय की उपमा सच्ची करके दिखलाओ।।
जब तक हो अभियोग सशंकित तब तक पातक से डरना।
आज रोक कर उस निर्णय को कल निश्चय करके करना।।
किसी कला में कुशल बने तुम अथवा विद्या के भंडार।
तो कल्पद्रुम की समता कर करना लोगो का उपकार।।
होना तब तक शान्त कभी ना-होना-जब तक सुखी समाज।
कल का मन में ध्यान न लाना सीख उसे सिखलाना आज।।
बड़ा समझ कर अगर किसी ने कुछ भी तुमसे लिया उधार।
किसी हेतु से दिया न तुमको तो तुम रहना बने उदार।।
जो कल देने कहता है तो हित घृत में क्यों आवे आंच।
आज उसे ना कभी सताना कलही करना उसको जांच।।
अपना जो अनुकूल मित्र हो करै दोष तो जाना भूल।
लेकिन उस पर लक्ष्य चाहिए जो रहता हरदम प्रतिकूल।।
छलबल कौशल से यदि वंश हो तो फिर रखना उसे सम्भाल।
बदला कल पर मही छोड़ना लेना देखो आज निकाल।।
बुद्धि दैव ने दी है हमको धन्यबाद दे उसको लक्ष।
हित अनहित अपना पहिचाने भावी भूत और प्रत्यक्ष।।
कहै कोई कुछ होगा जिससे कलह पाप आदिक उत्पात।
सुनकर बात आज तो उसका नित्य कहो कल उससे तात।।
हाथ पांव में जब तक बल है आंखों में है तेज प्रकाश।
श्रवण शक्ति है बुद्धि उपस्थित मन जब तक न हुआ निराश।।
दान धर्म उपकार आदि का तब तक करलो संग्रह साज।
क्या जाने कल रही न कल तो क्यों जाने देते हो आज।।
सब कामो का समय नियत है कहते हैं ऐसा धीमान।
बोते हैं लुनते फिर जैसे समय देखकर चतुर किसान।।
आज उचित करना है जिसका करो आज उसको धरधीर।
कल का जो हो काम आज क्यों? कल ही करना उसको 'मीर' ।।
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