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Sufinama

।। अंगदर्पण ।।

रसलीन

।। अंगदर्पण ।।

रसलीन

MORE BYरसलीन

    ।। मंगलाचरण ।।

    राधापद बाधाहरन साधा करि रसलीन।

    अंग अगाधा लखन को कीन्हों मुकुर नवीन।।1।।

    सो पावै या जगत मों सरस नेह कहे भाय।

    जो तन मन तें तिलन लौं बालन हाथ बिकाय।।2।।

    ।। बार-वर्णन ।।

    मोर पच्छ जो सिर चढ़ै बारन तें अधिकाय।

    सहस चखन लखि धनि कचन परे मान छिन पाय।.3।।

    ।। बेनी-वर्णन ।।

    बेनी बधि इक ठौर ह्वै अहि सम राखत ठौर।

    बिथुरि चँवरि से कच करत मन बिथोरि धरि चौंर।।4।।

    जे हरि रहे त्रिलोक मों कालीनाथ कहाइ।

    ते तुव बेनी के डसे सब जग हँसे बनाइ।।5।।

    भनत कैसैहू बनै या बेनी को दाय।

    तुव पीछे गहि जगत के पीछे परी बनाय।।6।।

    ।। मैमद-वर्णन ।।

    मानिक मनि ये नहिं जरे मैमद झबियन लाय।

    फनि तजि मनि पीछे परे तुव बेनी कै आय।।7।।

    मैमद झबियन मुकुत लखि यह आयो जिय जागि।

    ससि हित पीछे राहु के नखत रहे हैं लागि।।8।।

    ।। जूरा-वर्णन ।।

    चंदमुखी जूरो चितै चित लीन्हों पहिचानि।

    सीस उठायो है तिमिर ससि कौं पीछे जानि।।9।।

    यों बाँधति जूरो तिया पटियन को चिकनाय।

    पाग चिकनिया सीस की यातें रही लजाय।।10।।

    ।। पाटीयुत मॉग-वर्णन ।।

    माँग लगी ते बधिक तिय पाटी टाटी ओट।

    दोऊ दृग पच्छीन को हनत एक ही चोट।।11।।

    अरुन माँग पटिया नहीं मदन जगत को मारि।

    असित फरी पै लै धरो रकत भरी तरवारि।।12।।

    ।। भाल-वर्णन ।।

    पाटी दुति जुत माल पर राजि रही यहि साज।

    असित छत्र तमराज जनु धरयो सीस द्विजराज।।13।।

    वा रसाल को लाल किन देखत होंहि निहाल।

    जाहि भाल तकि बाल सब कूटति है निज भाल।।14।।

    जोरि सकत रसलीन तिहि भाल साथ का हाथ।

    चंद कलंकी करि दयो विधि सोहाग जिहिं माथ।।15।।

    ढुरे मांग ते भाल लौं लरके मुकुत निहारि।

    सुधा बुद मनु बाल ससि पूरत तम हिय फारि।।16।।

    ।। टीका-वर्णन ।।

    बारन निकट ललाट यों सोहत टीका साथ।

    राहु ग्रहत... मनु चन्द में राख्यों सुरपति हाथ17।।

    ।। लाल बिन्दी-वर्णन ।।

    लाल सुबेंदुली भाल तकि जग जानी यह रीति।

    तेरे सीस प्रतीति कै बसी मीत की प्रीति।।18।।

    ।। पीत बिन्दी-वर्णन ।।

    सोहत बेंदी पीत यो तिय लिलार अभिराम।

    मनु सुर-गुरु को जानि के ससि दीनों सिर ठाम।।19।।

    ।। स्वेत बिन्दी-वर्णन ।।

    यहि बिधि गोरे भाल पै बेंदी सेत लखाय।

    मनो अदेवन हित अभी लेत सुक्र ससि आय।।20।।

    ।। स्याम हिन्दी-वर्णन ।।

    दई बाल लिलार पै बेंदी स्याम सुधारि।

    माँग स्यामता उरग लौं बैठ्यौ कुण्डल मारि।।21।।

    ।। आड-वर्णन ।।

    तुव लिलार इन आड़ किय निज गुन बिदित निदान।

    अड़ि राखत है आड ह्वै आड आड़ जग प्रान।।22।।

    ।। खौर-वर्णन ।।

    सूधी पटिया माँग बिनु माथे केसर खौर।

    नेह कियो मनु मेघ तजि तडित चंद सों दौर।।23।।

    नारी केसर खौर यह प्यारी माथे मांह।

    झाँकी दरपन भाल मधि सीस किनारी छांह।।24।।

    ।। श्रवण-वर्णन ।।

    सीप स्रवन या रमनि की कैसे होय समान।

    जा प्रसंग तजि मुकुत गन यामैं बसैं निदान।।25।।

    ।। मुकुतायुत श्रवण-वर्णन ।।

    मुकुत भए घऱ खोइ कै बैठे कानन आय।

    अब घर खोवत कौन के कीजे आन उपाय।।26।।

    ।। तरौना-वर्णन ।।

    जटित तरौना स्रवन मैं यहि बिधि करत बिलास।

    पिता तरनि कीनो मनो पुत्र करन घर बास।।27।।

    ।। खुटिला-वर्णन ।।

    ठग तस्कर सेइ के लहत साधु परमान।

    ये खुटिला स्रुति सेइ के खुटिला रहे निदान।।28।।

    ।। कर्णफूल-वर्णन ।।

    करनफूल दुति धरन बिबि करन लसत इहि भाय।

    मनों बदन ससि के उदै नखत दुहूँ दिसि आय।।29।।

    ।। मौह-वर्णन ।।

    नाप नाप चुपचाप ह्वै अतनु छाप धनु आप।

    आय गह्यो भाव चाप अब परयो जगत के पाप।।30।।

    तजि सिंहासन राज अरु डासन रंक विसेखि।

    छुटै आसन कौन को मौंह सरासन देखि।।31।।

    ।। भौह-मरोर-वर्णन ।।

    ऐंठे ही उतरत धनुष यह अचरज की बान।

    ज्यौं ज्यौं ऐठाति भौं धनुष त्यों त्यों चढ़ति निदान।।32।।

    ।। पलक-वर्णन ।।

    यों तारे तिय दृगन के सोहत पलकन साथ।

    मनो मदन हिय सीस बिधु धरे लाज के हाथ।।33।।

    ।। बरुनी वर्णन ।।

    कारे अनियारे खरे कटकारे के भाव।

    झपकारे बरुनी करत झप झपकारे घाव।।34।।

    ।। नेत्र-वर्णन ।।

    अभी हलाहल मद भरे सेत स्याम रतनार।

    जियत मरत झुकि झुकि परत जिहि चितवत इकबार।।35।।

    कारे कजरारे अमल पानिप ढारे पेन।

    मतवारे प्यारे चपल तुव ढुरवारे नैन।।36।।

    तुरँग दीठि आगे धरयो बरुनी दल के साथ।

    तेरे चख मख के जगत कियो चहत है हाथ।।37।।

    ।। पुतरी-वर्णन ।।

    तन सुबरन के कसत यों लसत पूतरी स्याम।

    मनौ नगीना फटिक मैं जरी कसौटी काम।।38।।

    जो रसलीन तियान में रहे बीचित्र कहाय।

    ते पाहन पुतरी भये लखि तुव पुतरी भाय।।39।।

    ।। कोया वर्णन ।।

    कोयन सर जिनके करे सो इन राखे ठौर।

    कोयन लोयन ना हनों कोयन लोयन जोर।।40।।

    ।। काजर वर्णन ।।

    रे मन रीति विचित्र यह तिय नैनन के चेत।

    विष काजर निज खाय के जिय औरन के लेत।।41।।

    दृग दारा लखि ज्यों लह्यो दीपक जातक भाय।

    जग के घातक पाय के लागत पातक धाय।।42।।

    ।। काजर-कोर-वर्णन ।।

    तिय काजर कोरें बढ़ी पूरन किय कवि पच्छ।

    लखियत खजन पच्छ की पुच्छ अलच्छ प्रतचछ।।43।।

    ।। नेत्र-डोर-वर्णन ।।

    अंजन गुन दौरत नहीं लोयन लाल तरंग।

    कोरन पगि डोरन लगत तुव पोरन को रंग।।44।।

    राते डोरन ते लसत चख चंचल इहि भाय।

    मनु बिबि पूना अरुन में, खंजन बाँध्यो आय।।45।।

    ।। चितवन-वर्णन ।।

    गहि दृग मीन प्रवीन को चितवनि बंसी चारु।

    भवसागर में करति है नागर नरनु सिकारु।।46।।

    औचक ही मों तन चितै दीठि खीच जब लीन।

    विधन निसारन बान लों दोऊ बिधि दुख दीन।।47।।

    ।। कटाक्ष-वर्णन ।।

    बान बेधि सब बधे को खोज करति है धाय।

    अद्भुत बान कटाक्ष जिहिं बिध्यो लगे संग जाय।।48।।

    तिरछी चितवन ते चखन, चितवन किनों दोय।

    लागत तिरछी तेग जब, कटत बेग नहिं होय।।49।।

    ।। कटाक्ष-वर्णन ।।

    बान बेधि सब बधे को खोज करति है धाय।

    अद्भुत बान कटाक्ष जिहिं बिध्यो लगे संग जाय।।50।।

    तिरछी चितवन ते चखन, चितवन किनों दोय।

    लागत तिरछी तेग जब, कटत बेग नहिं होय।।51।।

    ।। स्वेदकण-वर्णन ।।

    अमल कपोलन स्वेद कन, दृगन लगत इहि रूप।

    मानो कंचन कंबु में मोती जड़े अनूप।।52।।

    ।। तिल-वर्णन ।।

    जाल घुँघट अरु दंड भुव नैनन मुलह बनाय।

    खैचति खग जग दृग तिया तिल दीनों दिखराय।।53।।

    सब जगु पेरत तिलन को को थके.. इहि...हेरि।

    तुव कपोल के एक तिल डारयो सब जग पेरि।।54।।

    ।। अलक-वर्णन ।।

    बांध्यो अलकन प्रान तुव, बांधत कचन बनाय।

    छोटन को अपराध यह, परयो बड़न पहँ जाय।।55।।

    बिबि कपोल की लटक तिय, अद्भुत गति यह कीन।

    ऐंचा खैची डारि कै, दोऊ बिधि जीय लीन।।56।।

    ।। नासा-वर्णन ।।

    नासा कंचन तरु भए मरकत पत्र पुनीत।

    पलक फूल दृगफल भए, सुरतरु कामद मीत।।57।।

    छाकि छाकि तुव नाक सो यो पूछत सब गाव।

    किते निवासिन नासिके, लह्यों नासिका नाब।।58।।

    ।। नासा-बेव वर्णन ।।

    नासा अतन तुनीर की, तीर नहीं दरसाय।

    बेधउ पर के सरन को सर लो बेधत जाय।।59।।

    ।। नथ-वर्णन ।।

    नथ मुकुतन में लालरी तकि जग लह्यों प्रकास।

    मुकुतन के सग नाक में रागी हिय को बास।।60।।

    नत्थ मुकुत अरु लालरी सतगुन रजगुन रंग।

    प्रकट कहां ते करत यह, सकल तमोगुन ढग।।61।।

    ।। लटकन-वर्णन ।।

    ठग लटकन नथ फांस लै, पाय नासिका साथ।

    मारि मरोर्यो जगत इन नट नट डोलें हाथ।।62।।

    ।। पनारी-वर्णन ।।

    ललित पनारी कलित यों, लसत अधर सुकुमार।

    मनु ईवी भासत परयो चिन्ह आंगुरी भार।।63।।

    ।। अधर-वर्णन ।।

    लिखन चहत रसलीन जब तुव अधरन की बात।

    लेखनि की बिबि जीभ बधि मधुराई ते जात।।64।।

    जो भा अधरन तरुनि के सोभा धरत कोय।

    याही विधि इनके परयों नाम अधर विधि जोय।।65।।

    तेरस दुतियाँ दूहुन मिलि एक रूप निज ठानि।

    भोर सांझ गहि अरूनई, भए अधर तुव आनि।।66।।

    लाल बाल के अधर ढिग, लाल बात जनि चाल।

    लाल बात सुनि स्रुति मुकुत करत बात में लाल।।67।।

    ।। तमोल-वर्णन ।।

    तरुनी अधरन अरुन पर यो रंग चढ़त तमोल।

    ज्यों रंग जेठी कुसुम को रातत लाल निचोल।।68।।

    चीन्हों रंग तमोल को दीन्हो अधरन बाल।

    कीन्हीं विद्रुम सुरंग पै मानो मीनो लाल।।69।।

    ।। दसन-वर्णन ।।

    लाल चलत जिहिं ठौर वा बाल दसन की बात।

    स्रवन सुनत ही सीप लो, मुकुतन तें भरि जात।।70।।

    मोल लेन जो जगत जिय, विधि जौहरी प्रवीन।

    राखे विद्रुम के डबा ले द्विज मुकुत नवीन।।71।।

    ।। अरुन दसन-वर्णन ।।

    दसन झलक मैं अरुनता, लख आवत मन माह।

    परी रदन पर आय कै, अधर रंग की छांह।।72।।

    अरुन दसन तुव बदन लहि को नहिं लह्यो प्रकास।

    मंगलसुत आये पढ़न बिद्या बिना पास।।73।।

    ।। स्याम दसन-वर्णन ।।

    स्याम दसन अधरान मधि सोहति है इहि भांति।

    कमल बीच बैठी मनो अलि छवनन की पाँति।।74।।

    ।। मुस्कान-वर्णन ।।

    अधरन बसि मुसुकानि तुव तजि परकीर्ति निदान।

    ज्यों कृपान अमृत धरे तऊ मारिहै प्रान।।75।।

    बिजुरि बाज रदनन में अमी बदन में आनि।

    याही तें दामिनि भई कामिनि की मुसुकानि।।76।।

    सुदँती के मुसकात यों अधरन आभा होति।

    मानहु मानिक पै परीं आइ दामिनी जोति।।77।।

    ।। हास-वर्णन ।।

    ललन कपट सौतिन गरब हास कियो सब नास।

    चंद्रहास सम भासई चंद्रमुखी को हास।।78।।

    दंतकथा वा हसन की अवर कही नहि जात।

    फूलझरी सी छूटत जब हँसि हँसि बोलति बात।।79।।

    ।। रसना-वर्णन ।।

    नाव सप्तसुर सिंधु की बचन मुक्ति की सीप।

    कै रसना सब रसन की पोथी गिरा समीप।।80।।

    ।। वाणी-वर्णन ।।

    अद्भुत रानी परत तुव मधुबानी स्रुति माँहि।

    सब ग्यानी ठवरे रहै पानी माँगत नॉहि।।81।।

    ।। मुख-बास-वर्णन ।।

    अगर अतर के नगर में कहूँ रही नहिं चाह।

    बगर बगर सब डगर में तुव मुख बास प्रवाह।।82।।

    नथ मुकुतन के झलक में मो मन लह्यो प्रकास।

    करत नाकबासी मुकुत आसु तिया मुख बास।।83।।

    ।। चिबुक-वर्णन ।।

    आए ठोढी सर करन बवरे अम्ब निदान।

    कोई जर कोइर भए, कोइ सुख पाक पिरान।।84।।

    ।। चिबुक गाड-वर्णन ।।

    मन पारा दृग कूप तें उफन बाल मुख छाहि।

    परयो चिबुक के गाड़ में, कबहूँ निरबत नाहिं।।85।।

    ।। चिबुक-तिल वर्णन ।।

    अंध भवन जल में धसें जे हरि केलि निधान।

    तीय चिबुक तिलके परें लागे चुबकी खान।।86।।

    होम कुंड तुव नाभि पर धूम रोम की रेख।

    ताहि कालिमा देखि के चिबुक माह तिल भेख।।87।।

    ।। मुख मण्डल-वर्णन ।।

    नैन छके अति ही लखे तिय तुव बदन उदोत।

    याके दीपत दीप ही फूंक मुकुर मुख होत।।88।।

    कवन जोति नैनन लगे वा सुन्दरि मुख तूल।

    या दीपत में होत है, चन्द चाँदनी फूल।।89।।

    नहिं मृगक भू अक यह नहि कलंक रजनीस।

    तुव मुख लखि हारी कियों घसि धसि कारी सीस।।90।।

    चन्द नहीं यह बाल मुख, सोभा देखन काज।

    बारी कारी रैन मों महताबी द्विजराज।।91।।

    ।। मुख चीर-वर्णन ।।

    इहिं बिधि गोरे बदन पर लसत डोरिया सेत।

    ज्यौं लहरीलों... सरद घन ससि पर सोभा देत।।92।।

    रंग लहरिया चीर में गोरे मुख को देख।

    मानों कला असेष ससि बैठो है परवेख।।93।।

    ।। किनारी-वर्णन ।।

    सुकिनारी सारी चितै सबन बिचारी बात।

    गात रूप पर बाल के जातरूप बलि जात।।94।।

    ।। ग्रीवा-वर्णन ।।

    जब धरती कपोत सब नटे देखि ग्रिव भेख।

    तब उन पापिन कठ बिधि दियो पाप की रेख।।95।।

    दर्पन से वा कण्ठ सम कंचन दुति कित होत।

    दुलरी जाके लगत ही जगत चौलरी होत।।96।।

    ।। कठत्रयरेख-वर्णन ।।

    जब मोहे तिहुलोक सब तिहूँ ग्राम लै ठीक।

    तब दीने तुव कठ बिधि ये त्रय मोहन लीक।।97।।

    कंबु कंठपर धरत यों कनक चोलरी जोति।

    चतुर भाल जनु दीप की डगमग डगमग होति।।98।।

    चपकला मोतिन जडित तरे ढरे बहुगूद।

    सहस किरन रवि ते मनो चुवत सुधा की बूंद।।99।।

    ।। चौकी-वर्णन ।।

    लाल चुनी में हरित नग यों उरबसी सोहाय।

    मानों चंद्रबधून में इंद्रपुत्र दरसाय।।100।।

    ।। हार-वर्णन ।।

    अदभुत मय सब जगत यह अदभुत जुगति निहार।

    हार बाल गर परत ही परयो लाल गर हार।।101।।

    हार सितासित नगन के लखि मन पायो ऐन।

    परयो मैन के चैन ते गरे इन्द्र के नैन।।102।।

    ।। हमेल-वर्णन ।।

    निजगुन जंत्र दिखाय के तिय हमेल हिय पाय।

    कलिजुग साधन रीति गल डारत जेल बनाय।।103।।

    ।। बॉह-वर्णन ।।

    चलत हलत नित बाह तुव देत कोटि जिय दान।

    याही ते सब कहत है सुधा लहर परिमान।।104।।

    सुधा लहर तुब बांह के कैसे होत समान।

    वा चखि पैयत प्रान को या लखि पैयत प्रान।।105।।

    कित दिखाइ कामिनि दई दामिनि की यह बांह।

    तरफरात सीतन फिरै फरफरात धन मांह।।106।।

    ।। भुज-वर्णन ।।

    छाई चख भाई हिया ल्याई म्रित को चाय।

    भाई भाई भुजन पै सांई क्यों लुभाय।।107।।

    ।। पहुँची-वर्णन ।।

    लालन के मन दृगन को रही चोप यह आन।

    पहुँची बन पहुँची कहूँ प्यारी के पहुचान।।108।।

    अगुरी दिपति मरीचिका चंद हथेरिन साथ।

    तम सौतिन जिनि ठेलि पिय पिय चकोर किय हाथ।।109।।

    ।। करअगुरी-वर्णन ।।

    मोहन सोषन बसिकरन उनमादन उचटाय।

    मदन सरन गुन तरुनि कर अंगुरिन लयो छिनाय।।110।।

    ।। अगुरीपोर-वर्णन ।।

    तिय प्रति अंगुरिन फलन मैं त्रयत्रय पोर सुहाय।

    तीन लोक बसकरन को बीज बये हैं आय।।111।।

    ।। नखयुत अगुरी-वर्णन ।।

    यों अंगुरी तिय करन की लागत नखन समेत।

    औषधीस गुन अमिय मनु जीवन मूरिन देत।।112।।

    ।। मेहदी-वर्णन ।।

    बारह मंगल रास गुनि सोई सब मिलि आय।

    उभय हथेरिन दस नखन मेहदी भई बनाय।।113।।

    दिपति हंथेरिन की दिपति यो मेंहदी के संग।

    लाली सावन सांझ में ज्यों सूरज के रंग।।114।।

    यों मेहंदी रंग में लसत नखन झलक रसलीन।

    मानों लाल चुनीन तर दीन्हों डाक नवीन।।115।।

    ।। बाजूबन्द-वर्णन ।।

    सुबरन बाजूबदजुत बांह लसत इहिं भाय।

    मनु दामिनि पै चाइके नखत बसे हैं आय।।116।।

    यों बजुबंद की छबि लसी छबियन फूंदन घौर।

    मानों झूमत हैं छके अमी कमल तर भौर।।117।।

    ।। भुजटार-वर्णन ।।

    बसुधा में भुज टार की उपमा बुधान चेत।

    बाल सुधाकर सुधाधर सुधा लहर सी लेत।।118।।

    ।। चूरी-वर्णन ।।

    रंग विरंग चूरीनहीं लखि रवि कंकन भेख।

    हरि सन बिनय बली मनों कर परसन परवेख।।119।।

    ।। गजरा-वर्णन ।।

    तुव गजरन के फुंदना मनिगन की दुति पाय।

    चित चोरत है जगत को अनगन दीप जराय।।120।।

    ।। आरसी छला-वर्णन ।।

    जड़ित आरसी कीर्तिका सोहत अंगुठा साथ।

    छले नखत जे अवर तें छले बने हैं हाथ।।121।।

    ।। आरसी मुखछाह-वर्णन ।।

    मुकुत जरी कर आरसी तामें मुख की छांह।

    यो लागत मानो ससी उड़गन मंडल मांह।।122।।

    ।। गात-वर्णन ।।

    सकुचत चंपा गात लखि संपा नहिं ठहराय।

    याको तन कंपा भयों झंपा गगन बनाय।।123।।

    तरुनि बरन सर करन को जग में कवन उदोत।

    सुबरन जाके अंग ढिग राखत कुबरन होत।।124।।

    देह दीपति छबि गेह की किहिं बिधि बरनी जाय।

    जा लखि चपला गगन ते छिति फरकत निज आय।।125।।

    ।। सुकुमारता-वर्णन ।।

    क्यों वा तन सुकुमार तनि देख पैयत नीठि।

    दीठि परत यों तरफरति मानो लागी दीठि।।126।।

    लगत बात ताको कहा जाकौ सूछम गात।

    नेक स्वास के लगत ही पास नहीं ठहरात।।127।।

    ।। अगवास-वर्णन ।।

    नैन रंग ते सुख लहत नासा बास तरंग।

    सोनो और सुगन्ध है बाल सलोनो अंगो।।128।।

    इत उत जानन देत छिन फाँसि लेत निज पास।

    मीन नासिका जगत की बसी है तुव वास।।129।।

    ।। कुच-वर्णन ।।

    उठि जोबन में तुव कुचन मो मन मारयो धाय।

    एक पंथ दुई ठगन ते कैसे कै बचि जाय।।130।।

    कठिन उठाये सीस इन उरजन जोबन साथ।

    हाथ लगाये सबन को लगे काहू हाथ।।131।।

    निरखि निरखि वा कुचत गति चकित होत को नाहिं।

    नारी उर ते निकरि कै पैठत नर उर माँहि।।132।।

    ।। कुचस्यामता-वर्णन ।।

    गोरे उरजन स्यामता दृगन लगत यहि रूप।

    मानों कंचन घट धरे मरकत कलस अनूप।।133।।

    ।। रोमावलीयुत कुचस्यामता-वर्णन ।।

    रोमावलि कुच स्यामता लखि मन लहयो विचार।

    समर भूप उर सीस पर धरी फरी समरार।।134।।

    ।। स्वेत कचुकी-वर्णन ।।

    कनक बरन तुव कुचन की अरुन अगर के संग।

    धरत कंचुकी स्वेत में बने फूल को रंग।।135।।

    ।। नील कचुकी-वर्णन ।।

    नील कचुकी में लसत यों तिय कुच की छांह।

    मानों केसर रँग भरे मरकत सीसी मांह।।136।।

    ।। अरुण कचुकी-वर्णन ।।

    बिधु बदनी तुव कुचन की पाय कनक सी जोति।

    रंगी सुरंगी कचुकी नारंगी सी होति।।137।।

    ।। हरित कचुकी वर्णन ।।

    हरित चिकन की कंचुकी पाय कुचन के थान।

    हरत हराई तें हियो बूढ़न लूटत प्रान।।138।।

    ।। पीत कचुकी-वर्णन ।।

    पीतांगी पर यों रही बिन्दी कनक सुहाय।

    मानों कंचन कलस पै लैसिम किन्हों लाय।।139।।

    ।। कचुकी जाली-वर्णन ।।

    जाली अंगिया बीच यों चमक कुचन की होति।

    झझरी कै तुम्बन लसै ज्यों दीपक की जोति।।140।।

    ।। रोमावली-वर्णन ।।

    रोमावलि रसलीन वा उदर लसति इहिं भाँति।

    सुधा कुभ कुच हित चली मनो पिपिलिका पांति।।141।।

    अमल उदर वा सुधर पै रोमावलि को पेख।

    प्रकट देखियत स्याम की अवागवन की रेख।।142।।

    ।। नामीयुत उर-त्रिबली-वर्णन ।।

    मो मन मंजन को गयो उदर रूप सर धाय।

    परयों सुत्रिबली झँवर ते नाभि भँवर मैं जाय।।143।।

    एक बली के जोर ते जग मो बास होय।

    तुव त्रिबली के जोर तें कैसे बचिहै कोय।।144।।

    उदर बीच मन जाय के बूड्यों नाभी मॉहि।

    कूप सरावर के परे कोऊ निकसत नाहिं।।145।।

    ।। नाभीअतर-वर्णन ।।

    मधुप मनोरथ नाभि तर निकट जात थहराय।

    याते चपकली भली अली हिये ठहराय।।146।।

    ।। नीबी-वर्णन ।।

    सोहत नीबी नाभि पर उपमा कहै कौन।

    मनो अतनु सिर पुहुप धरि बैठे अपने भौंन।।147।।

    निरखत नीबी पीत को पल रहते हैं चैन।

    नाभी सरसिज कोस के भौंर भए हैं नैन।।148।।

    ।। उदर किकिंणी वर्णन ।।

    उदर सुधा सर चंद पैं लसत कमल की भाँति।

    ता पीछे किंकिनि परी कनक भँवर की पाँति।।146।।

    ।। पीठ-वर्णन ।।

    इक तरू दुइ दल होत हैं यह अचिरज की बात।

    दुइ तरु कदली जंघ में पीठ एक ही पात।।150।।

    जोरि रूप सुबरन रची विधि रुचि पचि तुव पीठ।

    कीन्हीं रखवारी तहॉ ब्याली बेनी दीठ।।151।।

    ।। पीठ-पनारी-वर्णन ।।

    नहीं पनारी पीठ तुव कीन्हें दीठ बिचार।

    धसकि गई यह भार ते बेनी के सुकुमार।।152।।

    ।। कटि-वर्णन ।।

    सुनियत कटि सूच्छम निपट निकट देखत नैन।

    देह भए यों जानिये ज्यो रसना में बैन।।153।।

    सूच्छम कटि वा बाल की कहौं कवन परकार।

    जाके ओर चितौत ही परत दृगन में बार।।154।।

    ।। कटि-वर्णन ।।

    सत्य सीलता हरि करी, जगत आपने रंग।

    रमनि लंक गढ़ बंक गहि रावन भयों अनंग।।155।।

    ।। नितब-वर्णन ।।

    सुबरन सुवृत नितंब जुग यौं सोहत अभिराम।

    मनु रति रन जीते धरे उलटि नगारे काम।।156।।

    बा नितंब जुग जंघ के उपमा को यह सार।

    मानों कनक तमूर दोउ उलटि धरे करतार।।157।।

    ।। जधा वर्णन ।।

    सीस जटा धरि मौन गहि खड़े रहे इक पाय।

    ये तो तप केदली तऊ लहै जंघ सुभाय।।158।।

    गौरे ढोरे जंघ तुव बोरे सुबरन माँह।

    कोरि निहोरे नाह पै गए निहोरे नाँह।।159।।

    ।। उरू-वर्णन ।।

    प्यारे उरु तकि तक दिपति अंबर में समाय।

    दीप सिखा फानुस लों न्यारे झलकत आय।।160।।

    ।। पद-वर्णन ।।

    तुव पद समतन पदुम को कह्यो कवन विधि जाय।

    जिन राख्यो निज सीस पर तुव पद को पद लाय।।161।।

    ।। पगलाली-वर्णन ।।

    लिखन चहौं मसि बोरि जब अरुनाई तुव पाय।

    तब लेखनि के सीस के ईगुर रंग ह्वै जाय।।162।।

    ।। एडी-वर्णन ।।

    जो हरि जग मोहित करीं सो हरि परे बेहाल।

    कोहर सी एड़ीन सो को हरि लियो बाल।।163।।

    ।। पदतल वर्णन ।।

    तुब पगतल मृदुता चितै कवि बरनत सकुचाहिं।

    मन में आवत जीभ लौं मत छाले परिजाहिं।।164।।

    ।। पद अगुरी-वर्णन ।।

    रद कीनों तुव जुगल पद सब मद जीवन मूरि।

    दसम दसा दस दिसन की करि दस अंगुरिन दूरि।।165।।

    ।। पदनख-वर्णन ।।

    दुति वा उदित नखन की भनै कवन कवि ईस।

    पाय परत छिति जाहि के भयो चंद पीयसीस।।166।।

    ।। जावक-वर्णन ।।

    मन भावक जावक सखिन सौतिन पावक ज्वाल।

    सीस नवावक लाल को तुव पद जावक बाल।।167।।

    ।। चूरा-वर्णन ।।

    गुँजरी चूरा कनक तुव ऐसी बनी सुहाय।

    मनु ससि रवि निज रंग कर ल्याए पूजन पाय।।168।।

    ।। नूपुर वर्णन ।।

    अम्बुज पद भूपर धरत नूपुर नहिं बांजत।

    साधुन के मन भौर ह्वै बाँचत रच्छा जंत।।169।।

    ।। पायल-वर्णन ।।

    पायन पायल के परत झुनकायल सुनि कान।

    मायल करि घायल करत मुरछायल ज्यो तान।।170।।

    ।। अनवट वर्णन ।।

    सुबरन अनवट चरन को बरन करत यह मूल।

    नवल कमल पर विमल मनु सोहत गेंदाफूल।।171।।

    ओट करन...हित जात हैं केहूँ इनके चोट।

    विधि याही विधि ते धरयो इनके नाम अनोट।।172।।

    कलस सात बिछियान के विधि अति सुबुध बनाय।

    सप्तदीप राजान के मुकुट धरें तुव पाय।।173।।

    ।। गति-वर्णन ।।

    तुव गति लखि गज खेह सिर डारै कौन लोभाइ।

    जा सीखत ही हंस के लोहू उतरत पाइ।।174।।

    ।। सम्पूर्ण नायिका-वर्णन ।।

    नवला अमला कमल सी चपला सी चल चारू।

    चंद्रकला सी सीतकर कमला सी सुकुमारू।।175।।

    मुख ससी निरखि चकोर अरु तन पानिप लखि मीन।

    पद पंकज देखत भँवर होत नयन रसलीन।।176।।

    ।। हाव-भाव-वर्णन ।।

    हाव भाव प्रति अग लखि छबि की झलकन संग।

    भलत ग्यान तरंग सब ज्यों कुरछाल कुरंग।।177।।

    ।। वसन वर्णन ।।

    लाल पीत सित स्याम पट जो पहिरत दिनरात।

    ललित गात छवि छायके नैनन में चुभि जात।।178।।

    ।। सिखनख पूर्णता वर्णन ।।

    ब्रजवानी सीखन रची यह रसलीन रसाल।

    गुन सुबरन नग अरथ लहि हिय धारियो ज्यों माल।।179।।

    अंग अंग को रूप सब यामें परत लखाय।

    नाम अंग दरपन धरयों याही गुन ते ल्याय।।180।।

    सत्रह सौ चौरनबे सम्वत में अभिराम।

    यह सिख नख पूरन कियों ले श्री प्रभु को नाम।।181।।

    ।। इति श्री सुकवि सिरमौर रसलीन बिलगिरामी विरचित अंगदर्पण समाप्त।।

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