हमरा बियाह करो मोरे बाबा, तुम सों नाहिं निबाह हो ।
हमरा बियाह करो मोरे बाबा, तुम सों नाहिं निबाह हो ।
महात्मा धनी धर्मदास जी
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हमरा बियाह करो मोरे बाबा, तुम सों नाहिं निबाह हो ।
जिन के नाहिं रूप औ रेखा, उन से हमरो बियाह हो ।।
आवे न जाय मरै ना जीये, सो बर खोजो जाई हो ।
बूढ़ न बार तरून नहिं चेलिक, वा को तिलक लगाई हो ।।
गगन मँदिल वह गढ़ मोरे बाबा, अरध उरध के बीच हो ।
पवन बराती ब्याहन आये, मान करो सनमान हो ।।
तिरबेनी से नीर मँगावो, अछय बृच्छ कै डार हो ।
सत्त सुकृत कै कलस धरावो, पूजो पाँव हमार हो ।।
तिरगुन सेदुरा मँगावो मोरे बाबा, पिय से माँग भराइ हो ।
सतगुरू बिप्र के चरन पखारो, जुग जुग रहै सोहाग हो ।।
सब्द सुरत से गाँठ जुरावो, माँड़ो राखो छाइ हो ।
पाँच भँवरिया धुमाओ मोरे बाबा, गँठिया देवो निबुकाइ हो ।।
जाँद सुरज होउ कोहबर बाबा, पाँजी दसो दुवार हो ।
ऊँच दुवारी निहारो सखियाँ, निहुरि कै घर को जाहु हो ।।
ज्ञान कै डोलिया फँदावो मोरे बाबा, करि देवो बिदा हमार हो ।
धरमदास से छुटल भव सागर, सब सों भेंटि अकवार हो ।।
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