आस्ताँ है ये किस शाह-ए-ज़ीशान का मर्हबा मर्हबा
आस्ताँ है ये किस शाह-ए-ज़ीशान का मर्हबा मर्हबा
पीर नसीरुद्दीन नसीर
MORE BYपीर नसीरुद्दीन नसीर
रोचक तथ्य
منقبت درشان غوث اعظم شیخ عبدالقادر جیلانی (بغداد۔عراق)
आस्ताँ है ये किस शाह-ए-ज़ीशान का मर्हबा मर्हबा
क़ल्ब हैबत से लर्ज़ां है इंसान का मर्हबा मर्हबा
है असर बज़्म पर किस के फ़ैज़ान का मर्हबा मर्हबा
घर बसाने मिरी चश्म-ए-वीरान का मर्हबा मर्हबा
चाँद निकला हसन के शबिस्तान का मर्हबा मर्हबा
सर की ज़ीनत अ'मामा है इ'रफ़ान का मर्हबा मर्हबा
जुब्बा तन पर मोहम्मद के एहसान का मर्हबा मर्हबा
रँग आँखों में ज़हरा के फ़ैज़ान का मर्हबा मर्हबा
रूप चेहरे पे आयात-ए-क़ुरआन का मर्हबा मर्हबा
सज के बैठा है नौशाह जीलान का मर्हबा मर्हबा
बज़्म-ए-कौन-ओ-मकाँ को सजाया गया आज सल्ले-अ'ला
साएबाँ रहमतों का लगाया गया आज सल्ले-अ'ला
अंबिया औलिया को बुलाया गया आज सल्ले-अ'ला
इब्न-ए-ज़हरा को दूल्हा बनाया गया आज सल्ले-अ'ला
उ'र्स है आज महबूब-ए-सुबहान का मर्हबा मर्हबा
आसमाँ मंज़िलत किस का ऐवान है वाह क्या शान है
आज ख़ल्क़-ए-ख़ुदा किस की मेहमान है वाह क्या शान है
ला-तख़फ़ किस का मशहूर फ़रमान है वाह क्या शान है
बिल-यक़ीं वो शहंशाह-ए-जीलान है वाह क्या शान है
हक़ दिया जिस को क़ुदरत ने ए'लान का मर्हबा मर्हबा
हर तरफ़ आज रहमत की बरसात है वाह क्या बात है
आज खुलने पे क़ुफ़्ल-ए-मुहिम्मात है वाह क्या बात है
चार-सू जल्वा-आराई-ए-ज़ात है वाह क्या बात है
कोई भरने पे कश्कोल-ए-हाजात है वाह क्या बात है
जागने को मुक़द्दर है इंसान का मर्हबा मर्हबा
कोई महव-ए-फ़ुग़ाँ कोई ख़ामोश है अब किसे होश है
साज़ मुतरिब की ले नग़्मा बर-दोश है अब किसे होश है
अ'क़्ल हैरत के पर्दे में रू-पोश है अब किसे होश है
बज़्म की बज़्म मस्ती दर आग़ोश है अब किसे होश है
पी के साग़र अ'ली के ख़ुमिस्तान का मर्हबा मर्हबा
क्या हसीं मंज़र-ए-जूद-ओ-इकराम है दा'वत-ए-आम है
अहल-ए-दिल की नज़र मस्ती-आशाम है दा'वत-ए-आम है
हश्र तक मुद्दत-ए-गर्दिश-ए-जाम है दा'वत-ए-आम है
दस्त-ए-जिब्रील मसरूफ़-ए-इत'आम है दा'वत-ए-आम है
खाओ सदक़ा अ'ली शाह-ए-मरदान का मर्हबा मर्हबा
शम-ए'-तौहीद दिल में जला कर पियो दिल लगा कर पियो
शाह-ए-बतहा की ख़ैरात पा कर पियो दिल लगा कर पियो
नग़्मा-ए-कासा-ए-वस्ल गा कर पियो दिल लगा कर पियो
आँख मेहर-ए-अ'ली से मिला कर पियो दिल लगा कर पियो
ख़ुद पिलाने पे साक़ी है जीलान का मर्हबा मर्हबा
है अ'जब हुस्न का बाँकपन सामने इक चमन सामने
अहल-ए-ततहीर हैं ख़ेमा-ज़न सामने पंजतन सामने
है रू-ए-हसन की फबन सामने या हसन सामने
जल्वा-फ़र्मा हैं ग़ौस-ए-ज़मन सामने ज़ौ-फ़गन सामने
देखिए क्या बने चश्म-ए-हैरान का मर्हबा मर्हबा
गुलशन-ए-मुस्तफ़ा की फबन और है क़ाबिल-ए-ग़ौर है
शाह-ए-अबरार की अंजुमन और है क्या हसीं दौर है
बू-ए-गुलदस्ता-ए-पंजतन और है क्या अ'जब तूर है
शान-ए-आल-ए-हुसैन-ओ-हसन और है बिल-यक़ीं और है
सरमदी रँग है उस गुलिस्तान का मर्हबा मर्हबा
फ़क़्र की सल्तनत तुर्फ़ा सामान है रहमत-ए-ऐवान है
जिस के ज़ेर-ए-नगीं क़ल्ब-ए-इंसान है इ'ज्ज़-ए-उ'न्वान है
किस का दस्त-ए-नज़र कासा गर्दान है अ'क़्ल हैरान है
इक वली ज़ेब-ए-औरंग-ए-इ'रफ़ान है वाह क्या शान है
सर झुके हैं यहाँ मीर-ओ-सुल्तान का मर्हबा मर्हबा
हर घड़ी मेहरबाँ ज़ात-ए-बारी रहे फ़ैज़ जारी रहे
ख़ाक-बोसी पे बाद-ए-बहारी रहे फ़ैज़ जारी रहे
आ'लम-ए-कैफ़ में बज़्म सारी रहे फ़ैज़ जारी रहे
बे-ख़ुदी तेरे मस्तों पे तारी रहे फ़ैज़ जारी रहे
मेंह बरसता रहे तेरे एहसान का मर्हबा मर्हबा
अ'र्श-ए-असरार तक जिस की पर्वाज़ है तुरफ़ा अंदाज़ है
इ'ल्म-ए-लाहूत का हासिल ए'ज़ाज़ है तरफ़ा अंदाज़ है
ज़ुहद-ओ-तक़्वा में यकता-ओ-मुम्ताज़ है तुर्फ़ा अंदाज़ है
आबरू-ए-चमन क़ामत-ए-नाज़ है तुरफ़ा अंदाज़ है
पीर मेहर-ए-अ'ली क़ुतुब-ए-दौरान का मर्हबा मर्हबा
गोलड़े की ज़मीं कितनी मसऊ'द है ख़ित्ता-ए-जूद है
इब्न-ए-मौला अ'ली जिस में मौजूद है ख़ित्ता-ए-जूद है
क्या हसीं मंज़र-ए-शान-ए-मा'बूद है ख़ित्ता-ए-जूद है
हर अयाज़ इस का हम-दोश-ए-महमूद है ख़ित्ता-ए-जूद है
औज पाया है बिर्जीस-ओ-कैवान का मर्हबा मर्हबा
तेरे दीवाने हाज़िर हैं सरकार में आज दरबार में
सर झुकाए जनाब-ए-गुहर-बार में आज दरबार में
बन के साएल तिरी बज़्म-ए-अनवार में आज दरबार में
यूसुफ़-ए-मिस्र दिल तेरे बाज़ार में आज दरबार में
जश्न है क्या दिल अफ़रोज़ इरफ़ान का मर्हबा मर्हबा
दर बदर मुफ़्त की ठोकरें खाए क्यूँ हाथ फैलाए क्यूँ
माँगने कू-ए-अग़्यार में जाए क्यूँ हाथ फैलाए क्यूँ
उस के नामूस-ए-ग़ैरत पे हर्फ़ आए क्यूँ हाथ फैलाए क्यूँ
दिल क़नाअ'त की ज़ौ से न चमकाए क्यूँ हाथ फैलाए क्यूँ
जो नमक-ख़्वार हो पीर-ए-पीरान का मर्हबा मर्हबा
शाह-जीलाँ की चौखट सलामत रहे ता-क़यामत रहे
नक़्श-ए-पा का चमन पर करामत रहे ता-क़यामत रहे
खिलअ'त-ए-इज्तिबा जे़ब-क़ामत रहे ता-क़यामत रहे
सर पे वलियों का ताज-ए-इमामत रहे ता-क़यामत रहे
सिलसिला ग़ौस-ए-आ'ज़म के फ़ैज़ान का मर्हबा मर्हबा
वारिस-ए-ख़ातिमुल-मुर्सलीं आप हैं बिल-यक़ीं आप हैं
क़स्र-ए-ज़हरा का नक़्श-ए-हसीं आप हैं बिल-यक़ीं आप हैं
दीन-ए-बर्हक़ के मुही-ओ-मु'ईं आप हैं बिल-यक़ीं आप हैं
बज़्म-ए-इ'रफ़ां के मसनद-नशीं आप हैं बिल-यक़ीं आप हैं
हर वली तिफ़्ल है इस दबिस्तान का मर्हबा मर्हबा
मज़हर-ए-ज़ात-ए-रब्ब-ए-क़ादीर आप हैं दस्तगीर आप हैं
कारवान-ए-करम के अमीर आप हैं दस्तगीर आप हैं
शाह-ए-बग़दाद पीरान-ए-पीर आप हैं दस्तगीर आप हैं
इस 'नसीर'-ए-हज़ीं के नसीर आप हैं दस्तगीर आप हैं
कोई हम-सर नहीं आप की शान का मर्हबा मर्हबा
- पुस्तक : कुल्लियात-ए-नसीर गिलानी (पृष्ठ 348)
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.