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ख़ालिक़-ए-मुतलक़ है शैदा तेरे गुल-ओ-रुख़सार पर

अब्दुल बारी हनफ़ी

ख़ालिक़-ए-मुतलक़ है शैदा तेरे गुल-ओ-रुख़सार पर

अब्दुल बारी हनफ़ी

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    ख़ालिक़-ए-मुतलक़ है शैदा तेरे गुल-ओ-रुख़सार पर

    यूसुफ़-ए-मिस्री है सदक़े अबरू-ए-ख़मदार पर

    क़द्र की शब है निसार और लैल की सूरत फ़िदा

    ’अंबर-ओ-मुश्क-ए-ख़ुतन हैं ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं बार पर

    वारते हैं तन को अपने ला’ल-ओ-या’क़ूत और गुलाब

    'अरब के नौजवाँ तेरे लब-ए-गुलनार पर

    कोई सदक़े हो रहा है कोई होता है निसार

    हूर-ओ-ग़िल्माँ और रिज़वाँ सय्यद-ए-अबरार पर

    डॉक्टर हुकमा सभी 'आजिज़ 'इलाज-ए-'इश्क़ से

    हो करम तेरा मसीहा-ए-ज़माँ बीमार पर

    रोक ले वा'इज़ ज़बाँ क़ब्र-ओ-’अज़ाब-ए-नार से

    उम्मत-ए-'आसी है नाज़ाँ अहमद-ए-मुख़्तार पर

    ज़ात-ए-इक्ता-ए-मदीना पर सभी सदक़े हुए

    तू फ़िदा कर चल के ‘हनफ़ी’ जान मदनी हार पर

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