महबूब की महफ़िल को महबूब सजाते हैं
महबूब की महफ़िल को महबूब सजाते हैं
आते हैं वही जिन को सरकार बुलाते हैं
जिन का भरी दुनिया में कोई भी नहीं वाली
उन को भी मेरे आक़ा सीने से लगाते हैं
वो लोग ख़ुदा शाहिद क़िस्मत के सिकंदर हैं
जो सरवर-ए-आ'लम का मीलाद मनाते हैं
जो शाह-ए-मदीना को लज-पाल समझते हैं
दामान-ए-तलब भर कर महफ़िल से वो जाते हैं
इस आस पे जीता हूँ कह दे ये कोई आकर
चल तुझ को मदीने में सरकार बुलाते हैं
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