ऐ नूर-ए-नज़र सुल्तान-ए-उमम ग़ौस-ए-आ'ज़म शाह-ए-जीलाँ
रोचक तथ्य
منقبت در شان غوث پاک شیخ عبدالقادر جیلانی (بغداد-عراق)، یہ قصیدہ بغداد میں آستانۂ مبارکہ کی زیارت کے دوران لکھا گیا تھا۔
ऐ नूर-ए-नज़र सुल्तान-ए-उमम ग़ौस-ए-आ'ज़म शाह-ए-जीलाँ
सरचश्मा-ए-फ़ैज़-ओ-बहर-ए-करम ग़ौस-ए-आ’ज़म शाह-ए-जीलाँ
ऐ हैदर-ए-शेर-ए-नर के पिसर वे बिंत-ए-रसूल के लख़्त-ए-जिगर
वाक़िफ़ है शरफ़ से तेरे 'आलम ग़ौस-ए-आ'ज़म शाह-ए-जीलाँ
ऐ राहत-ए-जाँ हुसैन-ओ-हसन ताज़ा है तुझी से 'अली का चमन
दुनिया में है जन्नत तेरा हरम ग़ौस-ए-आ'ज़म शाह-ए-जीलाँ
हर फ़ज़्ल-ओ-कमाल में हो यकता और बज़ल-ओ-नवाल में बे-हमता
क्या कोई करे औसाफ़ रक़म ग़ौस-ए-आ'ज़म शाह-ए-जीलाँ
बग़दाद में हिन्द से आया हूँ और और बार-ए-गुनह लिए आया हूँ
उस 'आजिज़ पर हो निगाह-ए-करम ग़ौस-ए-आ'ज़म शाह-ए-जीलाँ
दामान-ए-मुराद मिरा भर दो अंजाम ब-ख़ैर मिरा कर दो
आसान हो मंज़िल मुल्क-ए-'अदम ग़ौस-ए-आ'ज़म शाह-ए-जीलाँ
दम में रहज़न अब्दाल बना इस ’आजिज़-ओ-मिस्कीं को भी शहा
कर दीजे 'अता 'इरफ़ान-ए-अतम ग़ौस-ए-आ'ज़म शाह-ए-जीलाँ
कहलाता हूँ मैं तेरा ख़ादिम हूँ अपने गुनाहों से नादिम
हाज़िर हूँ हुज़ूर में सर किए ख़म ग़ौस-ए-आ'ज़म शाह-ए-जीलाँ
रौज़ा में तिरे आ कर हर दम हर शाम-ओ-सहर गुल-गश्त-ए-हरम
दिखलाता है लुतफ़ बाग़-ए-इरम ग़ौस आज़म शाह जीलां
में बिन के गुल बाग़ जीलाँ रुख़्सत हूँ तेरे दर से शादाँ
ख़ुश्बू से मिरी महके आ'लम ग़ौस आ'ज़म शाह जीलाँ
तरह नाम हुआ ऐसा विरद ज़बाँ खुल जाएँ सारे राज़ निहाँ
बिन जाये मिरा दिल जाम जम ग़ौस आ'ज़म शाह जीलाँ
सारे दुश्मन पामाल रहें सब दोस्त मरे ख़ुशहाल रहें
हो उम्र बसर बे रंज-ओ-ग़म ग़ौस आज़म शाह जीलां
किसी अहल दुनिया से में कभी न करौं कोई हाजत पेश अपनी
ना सुनूं में किसी का ला-ओ-नअम ग़ौस आज़म शाह जीलां
नहीं आलम में अपना मावा बढ़ कर इस दर से तेरे शाहा
तेरे ही दर दौलत की क़सम ग़ौस आ'ज़म शाह जीलाँ
या ग़ौस मेरी इमदाद करो ग़मगीं हूँ मिरा दिल शाद करो
ये अर्ज़ है बा चशम-ए-पुरनम ग़ौस आज़म शाह जीलां
ए महबूब सुबहानी कर डालो मेरे ऊपर अपनी नज़र
काफ़ूर हूँ सारे दर्द-ओ-अलम ग़ौस आज़म शाह जीलां
जब नस्ल मेरी रज़्ज़ाक़ी है क्यूँ फ़िक्र मईशत बाक़ी है
कर दीजिए आलम से बेग़म ग़ौस आ'ज़म शाह जीलाँ
में ग़रीब मुसाफ़िर हूँ तेरा मिरा हामी दहर में तेरे सिवा
न तो मूनिस है न कोई हमदम ग़ौस आ'ज़म शाह जीलाँ
हाज़िर हूँ अब दर दौलत पर मिरा हाल नहीं मख़्फ़ी तुझ पर
शीईआ लल्ला क़ुतुब आ'लम ग़ौस आ'ज़म शाह जीलाँ
या ग़ौस करो मेरी तस्कीं तशवीश में है मिरी जान हज़ीं
हो ये मसरूर दिल पुरग़म ग़ौस आ'ज़म शाह जीलाँ
तिरी ज़ात मुक़द्दस है यकता ए नूर निगाह हबीब-ए-ख़ुदा
तो फ़ख़्र नस्ल बनी आदम ग़ौस आ'ज़म शाह जीलाँ
शेवन लल्ला शेवन लल्ला है अशरफ़ी मिस्कीं की सदा
दे कुछ अज़ अज़ करम ग़ौस आ'ज़म शाह जीलाँ
- पुस्तक : तहाइफ़-ए-अशरफ़ी (पृष्ठ 53)
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.