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दुख रज रज दाता नूँ सुनाइए मेले ने विछड़ जाना

बरी निज़ामी

दुख रज रज दाता नूँ सुनाइए मेले ने विछड़ जाना

बरी निज़ामी

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    रोचक तथ्य

    منقبت در شان داتا گنج بخش شیخ علی ہجویری (لاہور-پنجاب)

    दुख रज रज दाता नूँ सुनाइए मेले ने विछड़ जाना

    जीवें मंदा दाता नूँ मनाइए मेले ने विछड़ जाना

    कल ख़ोरे रल के बहिए अज दाता नूँ दिल दियाँ कहिए

    लखाँ सुत्याँ नूँ सजना जगाइए मेले ने विछड़ जाना

    जो मंगनाँ अज मंग लो सारे रंग दाता दा रंग लो

    अज झोलियाँ नूँ भर-भर जाइए मेले ने विछड़ जाना

    क़िस्मत नाल ऐह वेला लभदा रूप दाता दा रूप है रब दा

    आया वेला कित्थे हत्थों गँवाइए मेले ने विछड़ जाना

    दाता मेरा करमाँ वाला महफ़िलाँ लग्यां रहन ऐह शाला

    कह के आक़ा आक़ा ज़िंदगी सजाइए मेले ने विछड़ जाना

    कोई होना कोई होना नाहीं किसे रोना किसे रोना नाहीं

    ‘बरी’ यार कित्थे पछताईए मेले ने विछड़ जाना

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    नुसरत फ़तेह अली ख़ान

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