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Sufinama

साबरी गुलशन में बहार आई

ग़ुलाम हुसैन मीरज़ाई

साबरी गुलशन में बहार आई

ग़ुलाम हुसैन मीरज़ाई

MORE BYग़ुलाम हुसैन मीरज़ाई

    साबरी गुलशन में बहार आई

    ग़ुंचे खिलने लगे गुल महकने लगे

    रहमतों की घटाएँ भी छाने लगी

    नूर की बूँदा-बाँदी भी होने लगी

    क्या शजर क्या हजर क्या है शम्स-ओ-क़मर

    हूर-ओ-ग़िल्माँ मलाएक क्या जिन्न-ओ-बशर

    यूँ सहर-शाम ख़ुशियाँ मनाने लगे

    ये इधर वो उधर आने जाने लगे

    शामियाने से क़ुदसी हैं जाने लगे

    नूर के क़ुमक़ुमे जगमगाने लगे

    मय-ए-’इरफ़ाँ की नद्दियाँ है साबिर ग़ुलाम

    सैकड़ों ग़ोता-ज़न उस में हैं सुब्ह-शाम

    तुम भी आओ 'ग़ुलाम' अब जाओ

    कि साबिर से सब्र थोड़ा माँग लो

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