तरीक़-ए-हुदा हैं मदीने की गलियाँ
रोचक तथ्य
(ماہنامہ صوفی جلد ۴)
तरीक़-ए-हुदा हैं मदीने की गलियाँ
रह-ए-किब्रिया हैं मदीने की गलियाँ
सबील-ए-वफ़ा में मदीने की गलियाँ
सिरात-ए-बक़ा हैं मदीने की गलियाँ
अजब ख़ुश-नुमा हैं मदीने की गलियाँ
हरीम-ए-ख़ुदा हैं मदीने की गलियाँ
ज़मीं की फ़लक से ज़्यादः है रिफ़अत
बहिश्त-ए-बरीँ से फ़ुज़ूँ-तर है निकहत
बढ़ी अर्श-ओ-कुर्सी से है शान-ओ-शौकत
ख़ुदा ने अता की अजब इज़्ज़-ओ-अज़्मत
अजब ख़ुश-नुमा हैं मदीने की गलियाँ
हरीम-ए-ख़ुदा हैं मदीने की गलियाँ
फ़क़ीरों का तकियः ग़रीबों का मावा
यतीमों का मस्कन तो रांडों का मलजा
नहीं दूसरा बेकसों का ठिकाना
रहे मा मन-ओ-मंज़िल-ए-शाह-ओ-बतहा
अजब ख़ुश-नुमा हैं मदीने की गलियाँ
हरीम-ए-ख़ुदा हैं मदीने की गलियाँ
बजा करती है नौबत-ए-शहरयारी
बरसती हैं दिन-रात अफ़ज़ाल-ए-बारी
ख़जिल ख़ाक से बू-ए-मुश्क-ए-तत्तारी
नसीम-ए-सहर है कि बाद-ए-बहारी
अजब ख़ुश-नुमा हैं मदीने की गलियाँ
हरीम-ए-ख़ुदा हैं मदीने की गलियाँ
बरसती है दिन-रात रहमत जमा-जम
फ़लक से फ़रिश्ते उतरते हैं पैहम
है ख़ाक-ए-दर-ए-पाक ज़ख़्मों का मरहम
यहीं है मज़ार-ए-शफ़ी-ए-दो-आलम
अजब ख़ुश-नुमा हैं मदीने की गलियाँ
हरीम-ए-ख़ुदा हैं मदीने की गलियाँ
ये मस्कन-ए-ख़ास-ए-महबूब-ए-यज़्दाँ
ये है मदफ़न-ए-बादशाह-ए-रसूलाँ
मंज़िल-ए-मिनल्लाह है जिन पे क़ुर्बां
नबी नज्म-ए-ताबाँ हैं वो माह-ए-रख़्शाँ
अजब ख़ुश-नुमा हैं मदीने की गलियाँ
हरीम-ए-ख़ुदा हैं मदीने की गलियाँ
पिए तौफ़ दिन-रात क़ुदसी हैं आते
ब-सद शौक़ सर हैं ज़मीं पर झुकाते
मय-ए-वस्ल-ए-जानाँ हैं पीते-पिलाते
ख़ुशी के तराने हैं मस्ती में गाते
अजब ख़ुश-नुमा हैं मदीने की गलियाँ
हरीम-ए-ख़ुदा हैं मदीने की गलियाँ
ज़हे मरक़द-ए-पाक-ए-महबूब-ए-दावर
ख़जिल जिस की रिफ़अत से ख़र्ज-ए-ख़िज़र
करम कीजै शाफ़े-ए-रोज़-ए-महशर
ग़म-ओ-रंज-ओ-कुल्फ़त में है जान-ए-'कौसर'
अजब ख़ुश-नुमा हैं मदीने की गलियाँ
हरीम-ए-ख़ुदा हैं मदीने की गलियाँ
- पुस्तक : तज़्किरा शो'रा-ए-वारसिया (पृष्ठ 88)
- प्रकाशन : फ़ाइन बुक्स प्रिंटर्स (1993)
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