या नबी या मुस्तफ़ा अहलन-ओ-सहलन मर्हबा
या नबी या मुस्तफ़ा अहलन-ओ-सहलन मर्हबा
ऐ शह-ए-रह दूसरा अहलन-ओ-सहलन मर्हबा
आप आए और बहारें रक़्स फ़रमाने लगीं
ग़ुंचा ग़ुंचा कह उठा अहलन-ओ-सहलन मर्हबा
बे-नवाओं के लबों पर मुस्कुराहट खिल उठी
साहिब-ए-जूद-ओ-सख़ा अहलन-ओ-सहलन मर्हबा
गुलशन-ए-अन्फ़ास में आते ही आक़ा के क़दम
पत्ते पत्ते ने कहा अहलन-ओ-सहलन मर्हबा
ख़ुल्द में हर सू मुबारक-बादियों की धूम है
आए महबूब-ए-ख़ुदा अहलन-ओ-सहलन मर्हबा
आमना की गोद में आए जो फ़ख़्र-ए-काएनात
गूँज उठा ये ज़मज़मा अहलन-ओ-सहलन मर्हबा
का'बा-ए-अतहर की छत से हज़रत-ए-रूहुल-अमीन
कह रहे हैं बरमला अहलन-ओ-सहलन मर्हबा
ताज-ए-यकताई मुबारक हो शह-ए-ख़ैरुल-उमम
मज़हर-ए-नूर-ए-ख़ुदा अहलन-ओ-सहलन मर्हबा
अब्र-ए-रहमत झूम कर आया फ़ज़ा हँसने लगी
आगए शाह-ए-हुदा अहलन-ओ-सहलन मर्हबा
मर्हबा सद-मर्हबा ऐ ग़मज़दों के ग़म-गुसार
ख़ल्क़ के हाजत-रवा अहलन-ओ-सहलन मर्हबा
नूर है जारी यही फ़िक़रा ज़बान-ए-शौक़ पर
आमद-ए-ख़ैरुल-वरा अहलन-ओ-सहलन मर्हबा
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