ऐ ख़त्म-ए-रुसुल के नूर-ए-नज़र या पीर मिरे शहबाज़ वली
ऐ ख़त्म-ए-रुसुल के नूर-ए-नज़र या पीर मिरे शहबाज़ वली
सफ़ीउल आलम शहबाज़ी
MORE BYसफ़ीउल आलम शहबाज़ी
रोचक तथ्य
منقبت در شان حضرت شہباز محمد (بھاگل پور، بہار)
ऐ ख़त्म-ए-रुसुल के नूर-ए-नज़र या पीर मिरे शहबाज़ वली
हो मौला-'अली के लख़्त-ए-जिगर या पीर मिरे शहबाज़ वली
ग़म-ए-हिज्र से रहता हूँ मुज़्तर नहीं चैन ज़रा भी है दम-भर
बस देख लूँ ख़्वाब में एक नज़र या पीर मिरे शहबाज़ वली
याद आ आके तड़पाती है और दिल का दर्द बढ़ाती है
रो-रो यही कहता शाम-ओ-सहर या पीर मिरे शहबाज़ वली
तन्हाई के ग़म से टूट गए सब अपने पराए छूट गए
बेकस हूँ मिरी अब लीजे ख़बर या पीर मिरे शहबाज़ वली
मैं दुखिया हूँ बे-चारा हूँ और रंज-ओ-मेहन का मारा हूँ
लेते नहीं क्यूँ तुम मेरी ख़बर या पीर मिरे शहबाज़ वली
तुम सय्यद-ए-पाक हुसैनी-ए-नसब है सुर्ख़-बुख़ारी जिस का लक़ब
ऐ फ़ातिमा-बी के नूर-ए-नज़र या पीर मिरे शहबाज़ वली
तुम पैकर-ए-शान-ए-रहीमी हो तुम मज़हर-ए-शान-ए-करीमी हो
सुनो 'अर्ज़ मिरी बंदा-परवर या पीर मिरे शहबाज़ वली
ये बंदा 'सफ़ी' शहबाज़ी किस दर का बनेगा फ़रियादी
इक तुमरे सिवा ले कौन ख़बर या पीर मिरे शहबाज़ वली
- पुस्तक : Kilk-e-Midhat (पृष्ठ 76)
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.