अपनी हस्ती को जो मिस्मार नहीं कर सकता
अपनी हस्ती को जो मिस्मार नहीं कर सकता
वो ख़ुदा का कभी दीदार नहीं कर सकता
जानता हूँ मैं अनल-हक़ की हक़ीक़त लेकिन
ये तमाशा सर-ए-बाज़ार नहीं कर सकता
मैं नहीं चाहता ग़म मिरा अयाँ हो तुझ पर
अपने चेहरे को मैं अख़बार नहीं कर सकता
बारहा मैंने कहा है ये ज़माने से मगर
आप से इश्क़ का इज़हार नहीं कर सकता
काम इक आह फ़क़ीरों की जो कर सकती है
शाह क्या शाह का दरबार नहीं कर सकता
तू ज़बानों पे लगा सकता है पहरे लेकिन
हाँ ख़यालों को गिरिफ़्तार नहीं कर सकता
ना-तवाँ लाख हूँ आजिज़ हूँ मैं मगर 'साहिब'
हाँ में हाँ आपकी सरकार नहीं कर सकता
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