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जान-ओ-दिल से मैं हूँ शैदा ख़्वाजा-ए-अजमेर का

सुलतान चिश्ती

जान-ओ-दिल से मैं हूँ शैदा ख़्वाजा-ए-अजमेर का

सुलतान चिश्ती

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    रोचक तथ्य

    منقبت در شان غریب نواز خواجہ معین الدین چشتی (اجمیر-بھارت)

    जान-ओ-दिल से मैं हूँ शैदा ख़्वाजा-ए-अजमेर का

    मेरे दिल में है दरीचा ख़्वाजा-ए-अजमेर का

    मीरज़ाई कैफ़-ओ-मस्ती में हूँ मैं डूबा हुआ

    चिश्तिया है ये प्याला ख़्वाजा-ए-अजमेर का

    ख़ुद-शनासी हो तो बे-शक हो ख़ुदा भी रू-शनास

    हाँ यही कहना है कहना ख़्वाजा-ए-अजमेर का

    एक में सब सब में उस को देखता हूँ हर तरफ़

    ये नज़र किस का है सदक़ा ख़्वाजा-ए-अजमेर का

    वाह री निस्बत कि थामा हाथ मैं ने पीर का

    उन के ऊपर हाथ किस का ख़्वाजा-ए-अजमेर का

    इस लिए जलता है अपना तेज़ तूफ़ाँ में दिया

    है हमारे सर पे साया ख़्वाजा-ए-अजमेर का

    हर जगह निस्बत मुझे घेरे में लेती है सदा

    फ़ैज़ है सुल्ताँ अनोखा ख़्वाजा-ए-अजमेर का

    स्रोत :
    • पुस्तक : ज़ाद-ए-आख़िरत (पृष्ठ 153)

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