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मेरे आक़ा मेरे मौला मेरे प्यारे ख़्वाजा

शाह अकबर दानापूरी

मेरे आक़ा मेरे मौला मेरे प्यारे ख़्वाजा

शाह अकबर दानापूरी

MORE BYशाह अकबर दानापूरी

    रोचक तथ्य

    منقبت در شان غریب نواز خواجہ معین الدین حسن چشتی (اجمیر۔راجستھان)

    मेरे आक़ा मेरे मौला मेरे प्यारे ख़्वाजा

    मेरी आँखों में समा जा मेरे प्यारे ख़्वाजा

    मैं छुपा लूँ तुझे तो कोई देखे तुझ को

    आँखों से दिल में उतर मेरे प्यारे ख़्वाजा

    किस तरह ग़म में तिरे उ'म्र मिरी कटती है

    कुछ मिरा हाल भी पूछा मेरे प्यारे ख़्वाजा

    आस्ताने पे तिरे मैं ने लगा दी धूनी

    अब तो इस दर से उठवा मिरे प्यारे ख़्वाजा

    बुल-उ'ला तेरे हैं मैं उन का हूँ माह-ए-जमाल

    है यही मेरा तरीक़ा मेरे प्यारे ख़्वाजा

    मेरी आँखों में भी हो तेरी निगाहों का असर

    है ये 'अकबर' की तमन्ना मिरे प्यारे ख़्वाजा

    स्रोत :
    • पुस्तक : जज़्बात ए अकबर (पृष्ठ 104)
    • रचनाकार : शाह अकबर दानापुरी
    • प्रकाशन : आगरा अख़बार प्रेस, आगरा (1915)
    • संस्करण : First

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