सुल्तान-ए-मशाइख़ मिरे महबूब-ए-इलाही
रोचक तथ्य
منقبت درشان محبوب الہی خواجہ نظام الدین اولیا (دہلی۔ہندوستان)
सुल्तान-ए-मशाइख़ मिरे महबूब-ए-इलाही
अक़्ताब-ए-ज़माना के दिलों पर तिरी शाही
दुनिया में तिरा फ़ैज़ सुकून-ए-दिल-ओ-जाँ है
काम आएगी महशर में तिरी पुश्त-पनाही
क़दमों में तिरे सर न झुके ये नहीं मुम्किन
तू है ही कहाँ है तु तजली-ए-इलाही
जिस को भी तिरा क़ुर्ब मिला उस के बड़े बख़्त
महबूब तिरा क़ुर्ब तो है क़ुर्ब-ए-इलाही
सदक़े में शकर-गंज के 'आसी पे करम हो
मिट जाएगी चेहरा से गुनाहों की सियाही
'ख़ुसरौ' सी तड़प मुझ को मिरे पीर से हो जाए
हसरत है 'ज़िया' की यही महबूब-ए-इलाही
- पुस्तक : सुरूद-ए-रूहानी (पृष्ठ 172)
- रचनाकार : Meraj Ahmed Nizami
- संस्करण : Second
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