नहीं मेरा कोई हामी ख़ुदावंदा सिवा तेरे

नहीं मेरा कोई हामी ख़ुदावंदा सिवा तेरे
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मजज़ूब
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रोचक तथ्य
حسن آپ کا پہلا تخلص ہے۔
नहीं मेरा कोई हामी ख़ुदावंदा सिवा तेरे
सुनाऊँ किस को मैं हाल-ए-परागंदा सिवा तेरे
फँसा है मुर्ग़-ए-दिल बे-तर्ह मेरा बंद-’इस्याँ में
छुड़ा दे कौन किस से ये खुले फंदा सिवा तेरे
ज़मीं क्या आसमाँ क्या कोह क्या गुलज़ार-ओ-सहरा क्या
सभी हो जाएँगे इक दिन परागंदा सिवा तेरे
नगीन-ए-दिल से मिट जाए निशान-ए-’आलम-ए-फ़ानी
किसी शय का न नक़्श उस में रहे कुंदा सिवा तेरे
न हो मतलब किसी से याद तेरी मेरी हमदम हो
न कोई काम हो मुझ को न कुछ धंदा सिवा तेरे
गुनाह जितने ही हों लेकिन बता सकता हूँ हाँ इतना
करम हैं मेरे जुर्मों से ख़ुदावंदा सिवा तेरे
'हसन' ऊपर तिरे फ़रियाद लाया नफ़्स सर-कशी की
मदद चाहे भला किस से तिरा बंदा सिवा तेरे
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