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क़ासिम-ए-फ़िरदौस साक़ी-ए-कौसर हैं 'अली

साइम चिश्ती

क़ासिम-ए-फ़िरदौस साक़ी-ए-कौसर हैं 'अली

साइम चिश्ती

MORE BYसाइम चिश्ती

    रोचक तथ्य

    منقبت در شان حضرت علی مرتضیٰ (نجف-عراق)

    क़ासिम-ए-फ़िरदौस साक़ी-ए-कौसर हैं 'अली

    हादी-ओ-मह्दी 'अली हैदर-ओ-सफ़दर हैं 'अली

    मुर्तज़ा शेर-ए-ख़ुदा फ़ातिह-ए-ख़ैबर हैं 'अली

    मज़हर-ए-नूर-ए-ख़ुदा 'अक्स-ए-पयम्बर हैं 'अली

    'अर्श का दिल हैं 'अली 'अर्श-ए-मु'अल्ला की क़सम

    नूर-ए-ख़ालिक़ हैं 'अली नूरुम-मिनल्लाह की क़सम

    दोनों 'आलम में दरख़्शाँ है विलायत उन की

    ता-अबद जारी-ओ-सारी है हुकूमत उन की

    हक़ की 'इबादत है ज़ियारत उन की

    हाँ शहादत की शहादत है शहादत उन की

    दस्त-ए-क़ुदरत हैं 'अली ज़ोरीद अल्लाह की क़सम

    हुस्न-ए-का'बा हैं 'अली हुर्मत-ए-का’बा की क़सम

    मुस्तफ़ा चाँद हैं तो चाँद का हाला हैं 'अली

    सुब्ह-ए-इस्लाम के चेहरे का उजाला हैं 'अली

    ज़ीनत-ए-फ़क़्र-ओ-ग़िना आ'ला-ओ-बाला हैं 'अली

    हुस्न-ए-फ़ितरत की किताबों का हवाला हैं 'अली

    नूर-ए-ईमाँ हैं 'अली ईमाँ की हरारत की क़सम

    शर्ह-ए-क़ुरआँ हैं 'अली क़ुरआँ की 'अज़्मत की क़सम

    मिस्ल-ए-हारून-ए-'अली मिस्ल-ए-मसीहा हैं 'अली

    हामिल-ए-फ़त्ह-ए-मुबींं फ़ैज़ का दरिया हैं 'अली

    'इल्म के शहर का दर हक़ की तजल्ली हैं 'अली

    का'बे में पैदा हुए आप भी का'बा हैं 'अली

    जान-ए-अहमद 'अली जान-ए-रिसालत की क़सम

    शान-ए-अहमद हैं 'अली शान-ए-रिसालत की क़सम

    एक थे एक हैं एक रहेंगे हैदर

    एक है ज़हरा तो दो कैसे बनेंगे हैदर

    हक़ उधर होगा जिधर चेहरा करेंगे हैदर

    होगा क़ुरआन उधर जिस सम्त चलेंगे हैदर

    'इज़्ज़त-ए-दीं हैं 'अली दीन की 'इज़्ज़त की क़सम

    हुस्न-ए-'इरफ़ाँ हैं 'अली इरफ़ान-ए-हक़ीक़त की क़सम

    ग़ाज़ा-ए-रू-ए-वफ़ा 'इश्क़ का मसदर हैं 'अली

    मर्कज़-ए-नूर-ए-'अली हुस्न का मेहवर हैं 'अली

    फ़क़्र का घर हैं 'अली हादी-ओ-रहबर हैं 'अली

    लौह-ए-महफ़ूज़ का इक नक़्श-ए-मुनव्वर हैं 'अली

    सिदक़-ओ-सिद्दीक़-ए-’अली सिद्क़-ओ-सदाक़त की क़सम

    हैं 'अली ज़ौक़-ए-नबी नुबुव्वत की क़सम

    कान-ए-ईमाँ हैं ईमान का मर्कज़ भी 'अली

    बहर 'इरफ़ाँ हैं इरफ़ान का मर्कज़ भी 'अली

    गंज-ए-फ़ैज़ान हैं फ़ैज़ान का मर्कज़ भी 'अली

    शर्ह-ए-ईक़ान हैं ईक़ान का मर्कज़ भी 'अली

    मेरे महबूब 'अली मुझ को मोहब्बत की क़सम

    हक़ के मतलूब 'अली हक़्क़-ए-इमामत की क़सम

    शाह-ए-मर्दां हैं 'अली क़ुव्वत-ए-यज़्दाँ हैं 'अली

    माह-ए-ताबाँ हैं 'अली मेहर-ए-दरख़्शाँ हैं 'अली

    ’इज़्ज़त-ए-आल-ए-’अबा-आन-ए-शहीदाँ हैं 'अली

    शाह-ए-शाहान-ए-ज़माँ ज़ोर-ए-ग़रीबाँ हैं 'अली

    मेरे हैं मौला 'अली उन की विलायत की क़सम

    उन का 'साइम' हूँ गदा उन की सख़ावत की क़सम

    स्रोत :
    • पुस्तक : औलिया-ए-किराम और शोरा-ए-इज़ाम आस्ताना-ए-मौला अली पर (पृष्ठ 315)

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