ये तेरी बंदा-नवाज़ी ये करम है ख़्वाजा
तेरी निस्बत से ग़रीबों का भरम है ख़्वाजा
तेरा दीदार करूँ तेरी ग़ुलामी में रहूँ
तेरा कूचा मुझे गुलज़ार-ए-इरम है ख़्वाजा
मेरा हर सज्दा-ए-उल्फ़त है तेरे दर के लिए
मेरा का'बा तेरा दरबार-ए-करम है ख़्वाजा
मैं न का'बे का तलब-गार न बुत-ख़ाने का
मेरी नज़रों में तेरा नक़्श-ए-क़दम है ख़्वाजा
कुछ नहीं चाहिए मुझ को तेरी निस्बत के सिवा
तेरी निस्बत ही मेरा दीन-ओ-धरम है ख़्वाजा
यही काफ़ी है शफ़ाअ'त के लिए महशर में
आप का नाम मेरे दिल पे रक़म है ख़्वाजा
नाज़ कैसे करे न तेरी अ'ताओं में 'फ़ना'
तेरे क़ुर्बान तो सुल्तान-ए-अ'जम है ख़्वाजा
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अज्ञात
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