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ना'त-ओ-मनक़बत

ना’त हज़रत मुहम्मद (PBUH) की शान में लिखे गए कलाम को कहते हैं। ना’त को हम्द के बा’द पढ़ा जाता है। मनक़बत किसी सूफ़ी बुज़ुर्ग की शान में लिखी गयी शायरी को कहते हैं। हम्द और ना’त के बा’द अक्सर क़व्वाल जिस सूफ़ी बुज़ुर्ग के उर्स पर क़व्वाली पढ़ते हैं उनकी शान में मनक़बत पढ़ी जाती है।

1859 -1954

हाजी वारिस अ’ली शाह के मुरीद और मस्त-हाल बुज़ुर्ग

1207 -1273

मशहूर फ़ारसी शाइ’र, मसनवी-ए-मा’नवी, फ़िहि माफ़ीह और दीवान-ए-शम्स तबरेज़ी के मुसन्निफ़, आप दुनिया-भर में अपनी ला-ज़वाल तसनीफ़ मसनवी की ब-दौलत जाने जाते हैं, आपका मज़ार तुर्की में है ।

रहीम शाह वारसी के मुरीद

-2017

मुम्ताज़ आ’लिम-ए-दीन, फ़ाज़िल-ए-मतीन और वारसी शाइ’र

1855 -1936

ख़ैराबाद के मा’रूफ़ शाइ’र

बोलिए