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श्री बृन्दावन मो अजयत ब्रिजराज बिराजत है

अमृत राय

श्री बृन्दावन मो अजयत ब्रिजराज बिराजत है

अमृत राय

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    श्री बृन्दावन मो अजयत ब्रिजराज बिराजत है ।।ध्रु0।।

    घन तरबर सुरतरु की छाया, कमल कर तक्त बिछाया

    तापर सजल जलद सभकाया, मोर मुगट सिरपेच बनाया,

    संग राधिका सह ब्रिजजाया, परब्रह्म हर तिनको पाया,

    नैनमो भरपूर समाया, माया मे नट भे कछु पाया,

    बाका वनवारी मन भाया,

    महल सराय मोहबादरी

    हर सखि नादर, दामिनी सुंदर, बनि अनि आदर

    कोदर बारन आदर बासुरा को प्रबला,

    असुरखल प्रताप कार प्रभाकर प्रस्तुति प्रभु प्रसादकार प्रमदानी,

    कमलनि प्रयानिका गति प्रफुलित मति सो प्रबुध प्रबीन,

    प्रगट प्रेम से परम पुरुख संनिध सेवा कर है-

    व्रिजजन हरि सेवा कर रहे ।।श्री वृंदाबन मो0।।

    बैठे शाम महामरकत तनु,

    तापे मोर को चामर बीजित, कामर सखीकार लिये

    घाम रहित भई शाम नयन कु

    नाम शरन मो, पामर समकर,

    रगरिठारी, त्यजी अटारी

    बिपुर पुरकबती, अलक सवारत,

    ललित सुललना, नहिँ कछु तुलना,

    कान निकट अति, मान वती, मृदुपान खवावत,

    जांबुनद छबि तांबूल लिये

    कंबुकंठ गति अंबुज कर सो, अंबुपान करवावत दूती,

    श्रवण मकर मनु मुखि अधर अनुग्रह

    गृह सी जाके सन्मुख दगते

    पाच्छे सरकत मनु उन्मन मोहे ।। श्री वृन्दाबन मो0।।

    श्रीपति कुंज निवासी सहस आया

    श्रीविनास निज रास मंडल मो अस पाया

    सहभास सकल कु एक-एक गोपी एक नंद लाला,

    भुज पर भूज भुंजंग विशाला,

    कर महे कर मुकुट रसाला, मालाकार भई व्रिजबाला

    मरकत मजनिस श्री गोपाला, सुवर्ण नमनी त्रय अधर प्रवाला

    मर्द गर्द जामनि जुध जुथमो, नव घन मो डारी,

    जुगल जुगल राकेंद्र उजारो कवन ग्यान उपमान सवारो

    गुन गाय भव बंध करे,

    जमुना जल कल्लोल, लोल लोल का रज

    कुंज के कुंज फुले, अलि पुंज कुंजहि गुंज,

    तनहि मोहे गुंज रमत हे

    बैठे नाद सुश्चद, लेत अनुवाद, बिना उन्माद

    मगन घुनि अपनि कच्छु ना कहे ।।श्री वृन्दा0।।

    गीतनृत्यगति हावभाव इति धिमिकिति धिमिकिति

    धिमि धिमि धिमि धिमि घोर गर्जत पखवाज साजकी,

    आवाज गहेरी,

    परम होत सनननननननना सनन सनन,

    झ्यांझरि इतन मोलक, ढोलकी गत,

    घुंघु घुंघु मोरचंग,

    तार गुंगार उठतु है एक सखि के मुख ते तत्थैया तत्थैया

    कबितकाई कहत इत पायल,

    नरतन चाल चलत घुंररु घुमघुम घुम घुम नादजम रटयो,

    तामो मुरलिया, तननं तननं सा रि नि सा

    सा नि स्वसुरवर्तनि उपज अनोटी,

    कोयल कंठी कृष्ण कंठ से लपट,

    कपट की तान लपटकी तिक पट भुमयन तिनणम

    आर एकहि जो गगन हवाई,

    खुसी होत वृखभानजवाई,

    कवित सुरसरि राग रागिनी,

    कबित, ध्रुपद त्रिवट पंचदर पंचगीत और प्रबंध सुनि सुनि,

    ठौर ठौर गन्धर्न-गर्वहत उपर थाट बिमानी,

    सुरमुनि गलित गुमान, अमृतराय प्रभुलीला देखे,

    अधर अंगुरिया देह थकित रहे सुसर किंनर,

    थकित रहे नारद तुंबर थकित रहे ।।श्री बृन्दाबन।।

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