कुंजन मध रच्यो रास अद्भुत गत लिए गोपाल
कुंजन मध रच्यो रास अद्भुत गत लिए गोपाल
कुंडल की झलक देख कोटि मदन ठठक्यो
अधर तो सुरंग रंग बाँसुरी सुहाय संग
टेढ़ी छवि देख मेरो मन अटक्यो
एरी अब देखो जाय ऐसे सो कहा बसाय
अलकन की गत निरख शेषनाग सटक्यो
निरतत संगीत री तत तत थेई तत तत थेई
त्रिभंगी अंगी रंगी चाल देख इन्द्र धनुष पटक्यो
रुनक झुनक नूपुर ठुनक रुन झुन रुन
झनन ननन सननन ननन बंसी बाजे मंद मुख सों मटक्यो
रति विसाल सुख की रास भनत बैजू गोपाल
ये स्वरूप दरस परस वृन्दाबन को सटक्यो
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