अपनी बात -भ्रमत फिरत बहुत जनम बिलाने, तनु मनु धनु नहीं धीरे।
भ्रमत फिरत बहुत जनम बिलाने, तनु मनु धनु नहीं धीरे।
लालच बिषु काम लुबध राता, मनि बिसरे प्रभही रे।।रहाउ।।
बिषु फल मीठ लगे मन बउरे, चार बिचार न जानीआ।
गुन ते प्रीति बढ़ी अनभांती, जनम मरन फिरि तानिआ।।
जुगति जानि नही रिदै निवासी, जलत जाल जम फंध परै।
बिषु फल संचि भरे मन ऐसे, परम पुरष प्रभु मन बिसरे।।
गिआन प्रवेस गुरहि धनु दीआ, धिआनु मानु मन एकमए।
प्रेम भगति मानी सुषु जानिआ, त्रिपति अघाने मुकति भए।।
जोति समाए समानी जाकै, अछली प्रभु पहिचानिआ।
धने धनु पाइआ धरणीधरु, मिलि जन संत समानिआ।।
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