बड़ा नाथ माधो अगडधत्त गुंडा, पिवे घोटकर भांग भरपूर कुंडा ।।
बड़ा नाथ माधो अगडधत्त गुंडा, पिवे घोटकर भांग भरपूर कुंडा ।।
माधव मुनीष्वर
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बड़ा नाथ माधो अगडधत्त गुंडा, पिवे घोटकर भांग भरपूर कुंडा ।।
झुले हातमें मस्त लेकर कुतका, नहीं इस बराबर दुन्या में उचक्का ।।
बडा नाथमाधो बहमन में दुकसवी, गले गोधडी हात में क तसवी ।।
धनीकू करे याद हरदम दीवाना, शहर में पुकारे बुरा है जमाना ।।
पीरों का मुरीद मुठभर भंग चाबे, धनीके बयाने हमेशा मस्त गावे ।।
आवल झरझरीकी नली ओढता है, कंकर फोडकरती धुवा छोडता है ।।
गंगा के किनारे बड़ा यक नकी है, वहां येक खपरेला बंगला किया है ।।
ताहां नाथमाधो हमेशा झूलता है, फकीरकु नजर देखकर फूलता है ।।
कुसुंबी चिरा बांधकर फेरबिगी, अगलबंद जामानिया सब्जरंगी ।।
बडा नाथमाधो बम्हन जोर मंगी, धनीकू करे याद भंगी तरंगी ।।
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