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परमात्म भक्ति का उपदेश -परमादि पुरष मनोपिमं, सत्ति आदि भावरतं।

जयदेव

परमात्म भक्ति का उपदेश -परमादि पुरष मनोपिमं, सत्ति आदि भावरतं।

जयदेव

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    परमादि पुरष मनोपिमं, सत्ति आदि भावरतं।

    परमदभुतं परिक्रिति परं, जदिचिंति सरबगतं।।

    केवल रामनाम मनोरमं, बदि अंम्रित तत मइअं।

    दनीति जसमरणेन, जनम जराधि मरण भइअं।।रहाउ।।

    इछसि जमादि पराभयं, जसु स्वसति सुक्रित क्रितं।

    भवभूतभाव समव्यिअं, परमं प्रसंनमिदं।।

    लोभादि द्रिसटि परग्रिहं, जदि विधि आचरणं।

    तजि सकल दुहक्रित दुरमती, भजु चक्रधर सरणं।।

    हरिभगत निज निहकेवला, रिद करमणा वचसा।

    जोगेन किं जगेन किं, दानेन किं, तपसा।।

    गोविंद गोविंदेति जपि नर, सकल सिधिपद।

    जैदेव आइउ तससफुटं, भवभूत सरबगतं।।

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