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आरती -आरती रमता राम तुम्हारी, तुम सूं लागी सुरति हमारी।।

रामचरन

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    आरती रमता राम तुम्हारी, तुम सूं लागी सुरति हमारी।।

    रमता राम सकल भरपूरा, सुषिम थूल तुम्हारा नूरा।।

    आरति सुमरण सेवा कीजै, सब निर्दोष ज्ञान गहि लीजै।।

    ये हो आरती ये ही पूजा, राम बिना दरसै नहिं दूजा।।

    शिव सनकादिक शेष पुकारै, यह आरति भव सागर तारै।।

    रामचरण ऐसि आरति ताके, अठसिधि नव निधि चेरी जाकै।।

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