( विडंबना ) -तनि चंदनु मसतकि पाती, रिद अंतरि करतल काती ।
तनि चंदनु मसतकि पाती, रिद अंतरि करतल काती ।
ठग दिसटि वगा लिव लागा, देषि वैसिनो प्रान मुष भागा ।।
कलि भगवत बन्द चिरामं, क्रूर दिसटि रता निसि बादं।। रहाउ।।
नित प्रति इसनानु सरीरं, दुइ धोती करम मुषि पीरं।
रिदै छुरी संधिआनी, पर दरबु हिरन की बानी।।
सिल पूजसि चक्र गणेसं, निसि जागसि भगति प्रवेसं।
पग नाचसि चितु अकरमं, ए लंपट नाच अधरमं।।
म्रिग आसण तुलसी माला, कर ऊजल तिलकु कपाला।
रिदे कूडु कंठि रुद्राषं, रे लंपट क्रिसनु अभाषं।।
जिनि आतम ततु न चीन्हिआ, सभ फोकट धरम अबीनिया।
कहु वेणी गुरमुषि धिआवै, बिनु सतिगुर बाट व पावै।।
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