( साधना-स्वरूप )-इड़ा पिंगुला अउर सुषुमना, बसहिं इक ठाईं ।
इड़ा पिंगुला अउर सुषुमना, बसहिं इक ठाईं ।
वेणी संगमु तंह पिरागु, मनु भजनु करे तिथाई।।
संतहु तहाँ निरंजनु रामु है, गुरगति चीन्है बिरला कोइ।
तहा निरंजनु रमईआ होइ।।रहाउ।।
देवसथानै किआ नीसाणी, तहै बाजे सबद अनाहद वाणी।
तहँ चंदु न सूरज पउण न पाणी, साषी जागी गुरमुषि जाणी।।
उपजै गिआनु दुरमति छीजै, अंम्रित रस गगनंतरि भीजै।
एसु कला जो जाणै भेउ, भेटै तासु परम गुरदेउ।।
दसम दुआरा अगम अपारा, परम पुरष की घाटी।
ऊपरि हाटु हाट परि आला, आले भीतरि थाती।।
जागतु रहै सु कबहु न सोवै, तीन त्रिलोक समाधि पलोवै।
बीज मंत्र लै हिरदै रहै, मनूआ उलटि सुन महि गहै।।
जागतु रहै न अलीआ भाषै, पाँचउ इंद्री बसि करि राषै।
गुरकी साषी राषै चीति, मनु तनु अरपे क्रिसन परीति।।
कर पलव साषा बीचारे, अपना जनमु न जूऐ हारे।
असुर नदी का बंधै मूलु, पछिम फेरि चडावै सूरु।
अजरु जरे सु निझरु झरै, जगंनाथ सिउ गोसटि करै।।
चउ मुष दीवा जोति दुआर, पलू अनत मूलु विचकार।
सरब कला ले आये रहै, मनु माणकु रतना महि गुहै।।
मसतकि पदमु दुआलै मणी, माहि निरंजनु त्रिभवण धणी।
पंच सबद निरमाइल बाजै, ढुलके चवर संष घन गाजे।
दलि मलि दैतहु गुरमुषि गिआनु, बेणी जाचै तेरा नामु।।
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