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'आशिक़ न शुदी जल्वः-ए-जानाँ चे शनासी

शाह सिद्दीक़ सौदागर

'आशिक़ न शुदी जल्वः-ए-जानाँ चे शनासी

शाह सिद्दीक़ सौदागर

MORE BYशाह सिद्दीक़ सौदागर

    'आशिक़ शुदी जल्वः-ए-जानाँ चे शनासी

    ता सर देही हिम्मत-ए-मर्दां चे शनासी

    तू आशिक़ ही नहीं हुआ, जानां के जलवों को कैसे पहचानेगा (क्योंकि) जब तक सर देगा, हिम्मत-ए-मर्दां को कैसे जानेगा।

    ख़ुद रा परस्तीदः-ई 'इरफ़ाँ चे शनासी

    काफ़िर शुदी लज़्ज़त-ए-ईमाँ चे शनासी

    तू ने अपने आप की परस्तिश की ही नहीं, कैसे जानेगा कि इरफ़ान क्या चीज़ है, तू काफ़िर ही नहीं हुआ तो ईमान की लज़्ज़त को कैसे जानेगा।

    इमरोज़ दीदी तु अगर रू-ए-सनम रा

    फ़र्दा ब-क़यामत रुख़-ए-जानाँ चे शनासी

    आज (इस दुनिया में) तू ने अगर अपने महबूब का चेहरा नहीं देखा तो कल क़यामत के दिन उसको कैसे पहचानेगा।

    ज़ाहिद शुदी 'आबिद शुदी वा'इज़ शुदी लेकिन

    सूफ़ी शुदी मश्रब-ए-रिंदाँ चे शनासी

    रिंदों के मशरब को समझने के लिए तेरा ज़ाहिद, आबिद और वाइज़ होना ही काफ़ी नहीं बल्कि इसके लिए राह-ए-तरीक़त तसव्वुफ़ का मुसाफ़िर होना ज़रूरी है क्योंकि रिंदों के मशरब को एक सूफ़ी से बेहतर कौन जान सकता है।

    ‘सौदागर’-ए-’आशिक़ शुदः बंदः-ए-ख़्वाजः

    मुद्द'ई तु 'अज़्मत-ए-पीराँ चे शनासी

    सौदागर तू ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के एक पैरोकार का आशिक़ हुआ है (तब यह आशनाई हासिल हुई है) लेकिन साइल (तुझे इन बातों से क्या सरोकार क्योंकि) तुझे तो इन बुलंद मरतबा हस्तियों के मक़ाम का इदराक ही नहीं।

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    मुंशी रज़ीउद्दीन

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    इनामुल्लाह सईदुल्लाह

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