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Sufinama

ऐ जान-ए-जहाँ आरज़ू-ए-रु-ए-तू दारम

अज्ञात

ऐ जान-ए-जहाँ आरज़ू-ए-रु-ए-तू दारम

अज्ञात

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    जान-ए-जहाँ आरज़ू-ए-रु-ए-तू दारम

    दर सर हवस-ए-क़ामत-ए-दिलजू-ए-तू दारम

    दुनिया की जान तेरे चेहरे के दर्शन का मुश्ताक़ हूँ

    मेरे ख़याल में तेरी हसीन क़ा मत का नक़्शा जल्वा -गर है

    दर का'बा-ओ-दर-सोमिअ': दर दैर-ए-ख़राबात

    हर जा कि रवम दीदः-ओ-दिल सू-ए-तू दारम

    का’बा, गिरिजा, मय-ख़ाना जहाँ कहीं भी

    जाता हूँ मेरा दि तुम्हारी तरफ़ ही लगा रहता है

    अंदर सफ़-ए-ताअ'त चू ब-मस्जिद ब-नशीनम

    दिल मायल-ए-मेहराब-ए-दो-अब्रू-ए-तू दारम

    जब भी मैं इ’बादत की नीयत से मस्जि में बैठता हूँ

    मेरा दि तुम्हारी दोनों भवों के महराब की तरफ़ होता है

    हाजी ब-तवाफ़-ए-हरम-ए-का'बा रवद लेक

    मन का'बः-ए-मक़सूद सर-ए-कु-ए-तू दारम

    हाजी का’बे के तवाफ़ के लि जाता है

    लेकिन मेरा का’बा तो सिर्फ़ तू ही है

    हर जा कि रवद 'क़ुत्ब'-ए-दीँ आयद बर-ए-तू बाज़

    चूँ रिश्तः-ए-दिल बस्तः ब-हर-मू-ए-तू दारम

    ‘क़ुतुबुद्दीन’ जहाँ कहीं भी जाता है तेरे पास ही लौट कर आता है

    इसलिए कि मेरे दि का रिश्ता तेरे रोम-रोम से है

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    फरीद अयाज़

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