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ऐ ख़ुसरव-ए-ख़ूबाँ नज़रे सू-ए-गदा कुन

हाफ़िज़

ऐ ख़ुसरव-ए-ख़ूबाँ नज़रे सू-ए-गदा कुन

हाफ़िज़

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    ख़ुसरव-ए-ख़ूबाँ नज़रे सू-ए-गदा कुन

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    ख़ुसरौ-ओ-ख़ूबाँ (हसीनों के बादशाह या’नी सबसे बढ़कर हसीन) उस गदा की तरफ़ निगाह कर (जो तेरे हुस्न-ओ-जमाल का आ’शिक़ है) मुझ सख़्ता-ओ-बे-सर-ओ-पा पर रहम कर (या’नी सोख़्ता-ए-जाल और आ’जिज़-ओ-बे-माया पर)

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    शम्अ’-ओ-गुल-ओ-परवाना और बुलबुल सब जमा हैं, दोस्त आ! मेरी तन्हाई पर रहम कर (या’नी शम्अ’ फूल और परवाना अगरचे इकट्ठे हैं और मौसम-ए-बहार भी है, मज्लिस भी मुनव्वर है लेकिन फिर भी मैं तन्हा हूँ क्यूँ कि मुझको तुझसे रब्त-ओ-मोहब्बत है। तू ही मेरी तन्हाई को दूर कर सकता है)

    म-शिनो सुख़न-ए-दुश्मन-ए-बद-ख़ू-ए-ख़ुदा-रा

    बा-’हाफ़िज़’-ए-मिस्कीन-ए-ख़ुद दोस्त वफ़ा कुन

    महबूब बद-ख़स्लत दुश्मन की शिकायत ख़ुदा के वास्ते मत सुन, अपने ‘हाफ़िज़’ मिस्कीं के साथ दोस्त वफ़ा कर

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    फरीद अयाज़

    फरीद अयाज़

    स्रोत :
    • पुस्तक : नग़मातुल उंस फ़ी मजालिसिल क़ुदस (पृष्ठ 258)
    • रचनाकार :शाह हिलाल अहमद क़ादरी
    • प्रकाशन : दारुल एशा'अत ख़ानक़ाह मुजीबिया (2016)
    • संस्करण : First

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