अज़ गरेबाँ चंद तारे माँदः अस्त
अज़ गरेबाँ चंद तारे माँदः अस्त
ऐ जुनूँ दस्ते कि कारे माँदः अस्त
ऐ इश्क़ के हाथों बेख़ुदी और दीवानगी का ये हाल है कि गिरेबान के चंद तार ही बाक़ी रह गए हैं, ऐ जुनून-ओ-बेख़ुदी मदद कर क्योंकि अभी काम बाक़ी रह गया है (यानी इस महबूब को आराम करने का काम अभी बाक़ी रह गया है, इसलिए ऐ जुनून अपनी दीवानगी को और बढ़ा ताकि काम अंजाम को पहुँच जाए)।
तुंद म-गुज़र ऐ सबा दर कू-ए-ऊ
बुर्द अज़ मा ग़ुबारे माँदः अस्त
ऐ बयार महबूब की गली में! तेज़ न चल, क्योंकि महबूब के दर पर हमारे वुजूद की धूल पड़ी हुई है, वो उड़ कर यहाँ जुदा हो जाएगा (महबूब से वफ़ादारी और ताल्लुक़ का यहाँ इज़हार है कि आशिक़ अपने माशूक़ के दर से ख़ाक हो जाने के बाद भी जुदा होना पसंद नहीं करता)।
बर दर-ओ-दीवार-ए-ऊ अज़ ख़ून-ए-मन
सालहा नक़्श-ओ-निगारे माँदः अस्त
महबूब के दर-ओ-दीवार पर मेरे खून से बनी हुई चित्रकारी अभी तक मौजूद है (इस शेर का साधारण अर्थ यह है कि इश्क़ में हमारी क़ुर्बानियों और बलिदान की छाप अभी भी मिटी नहीं है)।
रंग-ओ-बूए कर्द पैदा 'आश्ना'
मुद्दते बा-गुल-ए-’इज़ारे माँदः असत
आशना ने अपने अंदर रौनक़ पैदा कर ली है , उसकी वजह यह है कि किसी फूल से चेहरे वाले महबूब की संगत मिल गयी है (यानी फूलों जैसी रंगीनी और ख़ुशबू आशना में पैदा हो गई और जमाल-ए-हम-नशीं दर मन असर कर्द के अनुसार उस गुलाब जैसे चेहरे वाले माशूक़ के साथ ने गुलाब की तरह सुगंधित कर दिया)।
- पुस्तक : नग़मातुल उंस फ़ी मजालिसुल क़ुदस (पृष्ठ 165)
- रचनाकार : शाह हेलाह अहमद क़ादरी
- प्रकाशन : दारुल एशा'अत ख़ानक़ाह मुजीबिया (2016)
- संस्करण : First
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