बाज़ इमरोज़ ब-सद नाज़-ओ-अदा आमदः-ई
बाज़ इमरोज़ ब-सद नाज़-ओ-अदा आमदः-ई
चश्म-ए-बद-दूर कि ग़ारत-गर-ए-मा आमदः-ई
फिर तू सैंकड़ों नाज़-ओ-अदा के साथ आया है
किसी की नज़र न लगे शायद तू हमें ग़ारत करने आया है
बा'द-ए-उम्रे ब-नज़र दिलबर-ए-मा आमदः-ई
मी-रवी बाज़ कुजा व ज़े-कुजा आमदः-ई
ऐ मेरे दिलबर बड़ी मुद्दत के बा’द तू नज़र आया है
फिर कहाँ जा रहा है और अभी कहाँ से आया है
हेच कस बर सर-ए-कु-ए-तू न-पुर्सीद ज़े-मन
कि दर ईंं-जा ब-चे उमीद व चरा आमदः-ई
किसी ने तुम्हारी गली में मुझ से नहीं पूछा
कि इस जगह तू किस उम्मीद से और क्यों आया है
ग़ाफ़िल अज़ हाल-ए-मन-ए-ख़स्त: न-दानम चूनी
ऐ कि ग़म-ख़्वार-तर अज़ शाह-ओ-गदा आमदः-ई
मुझे नहीं मा’लूम कि तू मुझ जैसे ख़स्ता-हाल से ग़ाफ़िल क्यूँ है
तुम्हारा ग़म-ख़्वार शाह-ओ-गदा के दर से वापस आया है
चश्म दारम कि कुनी बर मन-ए-आवार:-नज़र
गुमरहाँ रा ब-जहाँ राह-नुमा आमदः-ई
मुझे उम्मीद है कि तू इस आवारा पर नज़र-ए-करम करेगा
तू इस दुनिया में गुमराहों का रहनुमा बन के आया है
मुख़्तसर कुन 'हसन' ईं तूल-ए-अमल-हा-ए-अ'बस
बह्र-ए-यक-दम तू दरीं दार-ए-फ़ना आमदः-ई
ऐ ‘हसन’ अपनी उम्मीदों की फ़िहरिस्त को मुख़्तसर कर
तू इस दार-ए-फ़ानी में एक लम्हा के लिए आया है
- पुस्तक : नग़्मात-ए-सिमा (पृष्ठ 342)
- प्रकाशन : नूरुलहसन मौदूदी साबरी (1935)
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