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जान ब-फ़िदा-ए-आशिक़ान ख़ुश हवसेस्त आ'शिक़ी

रूमी

जान ब-फ़िदा-ए-आशिक़ान ख़ुश हवसेस्त आ'शिक़ी

रूमी

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    रोचक तथ्य

    अनुवाद: निःशब्द नुपूर, बलराम शुक्ल

    जान ब-फ़िदा-ए-आशिक़ान ख़ुश हवसेस्त आ'शिक़ी

    इश्क़-परस्त पिसर बाद-ए-हवासत मा बक़ी

    आशिक़ों पर मेरी जान न्यौछावर, आ’शिक़ होना कितनी अच्छी बात है।

    मेरे बेटे! इश्क़ का पुजारी बन, क्योंकि इसके अतिरिक्त जो कुछ है, वह वासना ही वासना है।

    अज़ मय-ए-इश्क़ सर-ख़ुशम आतिश-ए-इश्क़ मफ़्रशम

    पाए बनेह दर आतिशम चंद अज़ ईं मुनाफ़िक़ी

    मैं प्रेम की मदिरा से मस्त हूँ, प्रेम की ज्वाला ही मेरा आसन है।

    मेरी इस आग में प्रवेश करो, कब तक ये बहाने करते रहोगे?

    अज़ सू-ए-चर्ख़ ता ज़मीं सिलसिला-ई अस्त आतिशीं

    सिलसिला रा ब-गीर अगर दर रह-ए-ख़ुद मुहक़्क़िक़ी

    आकाश से लेकर ज़मीन तक आग कि एक ज़ंजीर है।

    अगर तुम अपने रास्ते के अन्वेषक हो तो इस ज़ंजीर को पकड़ लो।

    जान-ए-मरा तू बंदः कुन ऐश-ए-मरा तू ज़िंद: कुन

    मस्त कुन-ओ-बयाफ़रीन बाज़ नुमाए ख़ालिक़ी

    मेरे प्राण को अपना ग़ुलाम बना लो, मेरे सुख और चुन को वापस कर दो।

    मुझे मस्त कर दो, मुझे रच दो, स्रष्टा के गुण को प्रकट करो।

    यक-नफ़से ख़मोश कुन दर ख़मुशी ख़रोश कुन

    वक़्त-ए-सुख़न तू ख़ामुशी दर ख़मुशी तू नातिक़ी

    एक क्षण के लिए चुप हो जाओ! और मन ही मन चिल्लाओ !!

    जब बोलने का समय होता है तब तुम चुप रहते हो और जब चुप रहने का समय होता है तब बोलने लगते हो।

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    बलराम शुक्ल

    बलराम शुक्ल

    स्रोत :
    • पुस्तक : निः-शब्द नुपूर (पृष्ठ 143)
    • रचनाकार : मौलाना रूमी

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