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kamiin-e-banda-e-tuu मा हम: मौला तुई मा रा

शाह मोहसिन दानापुरी

kamiin-e-banda-e-tuu मा हम: मौला तुई मा रा

शाह मोहसिन दानापुरी

MORE BYशाह मोहसिन दानापुरी

    रोचक तथ्य

    منقبت در شان خواجہ بہاؤالدین نقشبند (بخارا-ازبکستان)

    kamiin-e-banda-e-tuu मा हम: मौला तुई मा रा

    गिरफ़्तः फ़ैज़-ए-तू हिंद-ओ-समरकंद-ओ-बुख़ारा रा

    तू ही हम लोगों की पनाहगाह और हमारा आक़ा-ओ-मौला है,

    समरक़ंद-ओ-बुख़ारा सब तुम्हारे दरिया-ए-करम से फैज़याब हैं।

    ज़ रहमत यक-नज़र बर-ए-हाल-ए-ज़ार-ए-कोर चश्माँ कुन

    कि ता बीनंद अनवार-ए-ख़फ़ी-ए-सिर्र-ए-इख़्फ़ा रा

    कोर चश्मों के ऊपर अपनी नज़र-ए-इनायत फ़रमा

    ताकि वो इन आँखों से अनवार-ए-ख़फ़ी का दीदार कर लें।

    ज़ ला-कुन महव-ए-ईं तस्वीर-ए-बे-मा'नी-ए-हस्तियम

    ब-लौह-ए-दिल ख़ुदा रा सब्त गर्दां नक़्श-ए-इल्ला रा

    ला के ज़रिए हमारी हस्ती की बेमानी तस्वीर को मह्व कर दे,

    ख़ुदा रा लौह-ए-दिल पर नक़्श-ए-इल्ला सब्त फ़रमा।

    तू शाह-ए-नक्शबंदान-ए-जहानी मा गदायानेम

    तुई मुश्किल-कुशा अज़ बंद-ए-मुश्किल वारहाँ मा रा

    तू नक़्शबंदियों के जहान का बादशाह है और हम गदा हैं,

    तू मुश्किल-कुशा है, लिहाज़ा मुश्किलात की क़ैद से हम लोगों को रिहाई अता कर।

    ज़ जाम-ए-बादः-ए-अलफ़क़्र-ओ-फ़ख़्री जुर्आ'-ए ख़्वाहम

    बरा-ए-मुस्तफ़ा मय रेज़ ईं काम-ए-दिल-ए-मा रा

    अल्फ़क़्रु-फ़ख़्री के जाम-ए-शराब से एक घूँट का तलबगार हूँ,

    मुस्तफ़ा के लिए हमारे इस हल्क़ में चंद क़तरे उंडेल दे।

    मन अज़ मीम-ए-निगाह-ए-मस्त-ए-ऊ मस्तम बरो साक़ी

    ब-ख़ाक-अफ़्गन ख़ुम-ओ-पैमाना-ओ-मीना-ओ-सहबा रा

    मैं उसकी निगाह-ए-मस्त के मीम से मस्त हूँ,

    साक़ी जाओ उसके सहबा, ख़ुम, पैमाना और जाम में ख़ाक डाल दो।

    ब-दिलदारी निहाँ तू उल्फ़त-ए-शाह-ए-बहाउद्दीन

    कि 'मोहसिन' अंदरून-ए-कूज़ः कर्दी बंद दरिया रा

    तुम्हारा दिल शाह बहाउद्दीन की मोहब्बत में गिरफ़्तार है,

    मोहसिन ने कूज़े के अंदर एक दरिया को समो दिया है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कुल्लियात ए मोहसिन
    • रचनाकार : शाह मोहसिन दानापूरी

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