Font by Mehr Nastaliq Web
Sufinama

मकीन-ए-अ’र्श-ए-मुअज़्ज़म जनाब-ए-मुनइ'म-ए-पाक

शाह मोहसिन दानापुरी

मकीन-ए-अ’र्श-ए-मुअज़्ज़म जनाब-ए-मुनइ'म-ए-पाक

शाह मोहसिन दानापुरी

रोचक तथ्य

منقبت در شان مخدوم محمد منعم پاک

मकीन-ए-अ’र्श-ए-मुअज़्ज़म जनाब-ए-मुनइ'म-ए-पाक

फ़रोग़-ए-ताले’-ए-आदम जनाब-ए-मुनइ'म-ए-पाक

जनाब-ए-मुनअम पाक अर्श-ए-मुअज़्ज़म के मकीन हैं,

जनाब-ए-मुनअम पाक बख़्त-ए-इंसानी की बुलंदी का वसीला हैं।

अनीस-ओ-मूनिस-ए-जानम जनाब-ए-मुनइ’म-ए-पाक

हबीब-ए-रूह-ए-रवानम जनाब-ए-मुनइ'म-ए-पाक

जनाब-ए-मुनअम पाक मेरी जान के अनीस और मोनिस हैं,

जनाब-ए-मुनअम पाक पूरी दुनिया का ख़ुलासा हैं।

ख़ुदा बरा-ए-ख़ुदश बरगुज़ीदा अज़ हमः ख़लक़

खुलासा-ए-हमः-आ’लम जनाब-ए-मुनइ’म-ए-पाक

ख़ुदा ने तमाम मख़लूक़ात को तो अपने लिए मुंतख़ब किया है,

लेकिन तमाम आलम का ख़ुलासा जनाब-ए-मुनअम पाक हैं।

चू रास्त सू ब-तू कर्देम क़िबलः-ए-ख़ुद रा

चरा बरदरत उफ़्तम जनाब-ए-मुनइ’म-ए-पाक

जब हमने अपना क़िब्ला तुम्हारी जानिब कर लिया तो

क्यों जनाब-ए-मुनअम पाक में तुम्हारे दर पर पड़ा रहूं।

जहान-ओ-अहल-ए-जहाँ रा ज़े-ज़ात-ए-ऊ रौनक़

नगीन-ए-ख़ातम-ए-आ'लम जनाब-ए-मुनइ'म-ए-पाक

उसकी ज़ात जहान और अहले जहान के लिए बाइस-ए-रौनक़ है,

जनाब-ए-मुनअम पाक ख़ातम-ए-आलम के नगीना हैं।

चू बर्क़-ए-हुस्न-ए-तू फ़र्मूद जल्वः ता ब-दिलम

अज़ाँ ब-ख़ुद निग्रानम जनाब-ए-मुनइ’म-ए-पाक

जब तुम्हारे हुस्न की बर्क़ मेरे दिल पर जल्वा-फ़िगन हुई,

उस वक़्त से जनाब-ए-मुनअम पाक ख़ुद हमारे निगरां हैं।

मरा ज़े-हौल-ए-क़ियामत चे बाक ‘मोहसिन’

कि हसत पुश्त-पनाहम जनाब-ए-मुनइ'म-ए-पाक

मुहसिन मुझे क़यामत का ख़ौफ़ क्यों होगा,

हमारे लिए जनाब-ए-मुनअम पाक की पुश्त-पनाही ही काफ़ी है।

स्रोत :
  • पुस्तक : कुल्लियात ए मोहसिन
  • रचनाकार : शाह मोहसिन दानापूरी

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY
बोलिए