रफ़्ती-ओ-हम-चुनाँ ब-ख़याल-ए-मन अंदरी
रफ़्ती-ओ-हम-चुनाँ ब-ख़याल-ए-मन अंदरी
गोई कि दर बराबर-ए-चश्मम मुसव्विरी
तू चला गया लेकिन तू अब भी हमारे ख़याल में है
ऐसा लग रहा है कि हमारी आँख के सामने कोई चित्रकार खड़ा है
फ़िक्रे ब-मुन्तहा-ए-जमालत नमी-रसद
कज़ हर्चे दर ख़याल-ए-मन आयद नेको-तरी
तेरे असीम सौंदर्य की कल्पना तक संभव नहीं
जो भी हमारे ध्यान में आएगा तू उससे बढ़ कर है
तू ख़ुद फ़रिश्त:-ई न अज़ींं गुल सरिश्त:ई
गर ख़ल्क़ ज़े-आब-ओ-ख़ाक तू अज़ मुश्क-ओ-अं'बरी
तू फ़रिश्ता है और फूलों से तैयार हुआ है
पूरी दुनिया मिट्टी और पानी से बनी है लेकिन तू ख़ुश्बू से पैदा किया गया है
मा रा शिकायते ज़े तू गर हस्त हम ब-तुस्त
कज़ तू ब-दीगरे न-तवाँ बुर्द दावरी
मुझे अगर कोई शिकायत है तो बस तुझसे है
इसलिए कि तेरे अ’लावा और किसी से न्याय की उम्मीद नहीं है
चंदाँ कि ज़ोह्द बूद दवीदेम दर तलब
कोशिश चे सूद चूँ न-कुनद बख़्त यावरी
अपने संयम और सांसारिक सुखों के त्याग के लिए हम इधर उधर भटकते रहे
कोशिश उस वक़्त तक नहीं रंग ला सकती जब तक क़िस्मत साथ ना दे
'सा'दी' ब-वस्ल-ए-दोस्त चु दस्तत नमी-रसद
बारी ब-याद-ए-दोस्त ज़माने बसर बुरी
ऐ ‘सा’दी’ जब दोस्त से मिलन न हो
तो दोस्त की याद में अपनी ज़िन्दगी गुज़ार ले
- पुस्तक : नग़्मात-ए-सिमा (पृष्ठ 369)
- प्रकाशन : नूरुलहसन मौदूदी साबरी (1935)
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