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Sufinama

साक़ी बिया कज़ फ़ैज़-ए-मय दारम हवस-हा दर बग़ल

शाह तुराब अली क़लंदर

साक़ी बिया कज़ फ़ैज़-ए-मय दारम हवस-हा दर बग़ल

शाह तुराब अली क़लंदर

MORE BYशाह तुराब अली क़लंदर

    साक़ी बिया कज़ फ़ैज़-ए-मय दारम हवस-हा दर बग़ल

    ता कै निहाँ दारी ज़े-मन ईं जाम-ओ-मीना दर बग़ल

    साक़ी कि मैं शराब की अनुकंपा से वासनाओं को किनारे लगा सकूँ

    तू कब तक इस शराब के प्याले और सुराही को अपने बग़ल में छुपाए रखेगा

    यक आरज़ू-ए-वस्ल-ए-मन आख़िर न-गर्दद ता-ब-हश्र

    गीरम चे-साँ रोज़े तुरा बा सद तमन्ना दर बग़ल

    मिलन की मेरी एक आरज़ू क़यामत तक पूरी नहीं होगी

    मैं तुझ से सैंकड़ों कामनाएँ पूरी होने की उम्मीद कैसे करूँ

    ना-हक़ रवी गुल-बदन बहर-ए-तमाशा दर चमन

    दारद रुख़-ए-ज़ेबा-ए-तू सदहा तमाशः दर बग़ल

    गुल-बदन, सैर के लिए चमन में जाना बेकार है

    तेरे हसीन चेहरे में सैंकड़ों तमाशे मौजूद हैं

    गह मी-कशद दर कू-ए-ऊ गह मी-बरद बर बू-ए-ऊ

    दिल नीस्त दर पहलू-ए-मन दारेम सौदा दर बग़ल

    मेरा दिल कभी मुझे उस के कूचे की तो कभी उसकी ख़ुश्बू की तरफ़

    लिए फिरता है वो मेरे पहलू में नहीं है और मुझ पर दीवानगी तारी है

    शौक़-ए-शिना गर बाश्दत आश्ना सूयम बिया

    दारद 'तुराब' अज़ अश्क-ए-ख़ुद हर क़त्र: दरिया दर बग़ल

    दोस्त अगर तुझे तैराकी का शौक़ है तो मेरे पास

    ‘तुराब’ के आँसुओं की हर बूँद में एक दरिया है

    स्रोत :
    • पुस्तक : दौरान-ए-तुराब अ'ली शाह क़लन्दर (पृष्ठ 52)
    • रचनाकार : तुराब अ'ली शाह क़लन्दर काकोरवी
    • प्रकाशन : सरकारी रियासत, रामपुर (1913)

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