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Sufinama

वजूद-ए-मह्ज़-ए-मुत्लक़ रा हमः जा हर ज़माँ दीदम

लाल शहबाज़ क़लंदर

वजूद-ए-मह्ज़-ए-मुत्लक़ रा हमः जा हर ज़माँ दीदम

लाल शहबाज़ क़लंदर

वजूद-ए-मह्ज़-ए-मुत्लक़ रा हमः जा हर ज़माँ दीदम

ब-हर सूए ब-हर कूए ब-हर सूरत अ’याँ दीदम

मैं ने हर जगह और हर वक़्त सिर्फ़ अल्लाह को देखा

हर तरफ़ और हर गली में वही नज़र आता है

हमाँ वहदत हमाँ कसरत ज़े कसरत हम हमाँ वहदत

व-लेकिन इख़्तिलाफ़श दरमियान-ए-हुक्म-ए-आँ दीदम

वही एकत्व, वही विविधता और फि विविधता से वही एकत्व

लेकिन मैं ने उनकी विविधता में उस का ही हुक्म देखा

ब-नूरश चूँ मुकम्मल शुद नज़र ज़ाहिर अज़-आँ बातिन

ब-सूरत जुमलः आ’लम रा जमाल-ए-आँ निशाँ दीदम

जब उसके नूर से बाहरी दृष्टि पूर्ण हुई तो उससे अंतर्मन का भी इज़्हार हुआ

इस तरह मैं ने उसके जमाल को पूरे संसार में देखा

न-दीदम मन मगर आँ रा कि मह्ज़ अस्त दर जहाँ मुत्लक़

फ़ना दीदम हमः कस रा चूँ रा दरमियाँ दीदम

मैं ने संसार में उस परमात्मा के सिवा किसी और को नहीं देखा

मैं ने सब को नश्वर और सिर्फ़ ख़ुदा को अनश्वर देखा

यक़ीँ रा अ’याँ बीनद अगर फ़ानी शवद अज़ ख़ुद

फ़ना गश्ती अज़ीं ख़ुद रा यके आँ आ’शिक़ाँ दीदम

अगर वो ख़ुद से मिट जाए तो तू यक़ीनन उस को प्रकट देखेगा

अगर तू ख़ुद से मिट जाए तो मैं ने उन आ’शिक़ों को देखा है जो ख़ुद मिट जाते हैं

ब-यक पर्वाज़ मी-बीनम कि ‘शहबाज़म’ ब-गिर्यम हक़

ब-नूर-ए-चश्म-ए-बातिन ऐ’नी ख़ुद रा ग़ैनी आँ दीदम

मैं एक ही उड़ान देखता हूँ कि ‘शहबाज़’ हूँ, सच कहता हूँ

अंतर्दृष्टि से उसे देख कर मैं ने ख़ुद को ही देखा है

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