ऐ आँ कि तुरा दर तूई नीस्त तसर्रुफ़
ऐ आँ कि तुरा दर तूई नीस्त तसर्रुफ़
आँ बेह कि न-गोई तू सुख़न राज़-ए--तसव्वुफ़
हे मनुष्य, तेरी बुद्धि पर अहंकार का पर्दा पड़ गया है। तू अहंकार के अधिकार में आ गया है।
तेरे लिए यही अच्छा होगा कि तू सूफ़ियों के रास्ते का वर्णन बिल्कुल छोड़ दे।
दर कू-ए-तसव्वुफ़ ब-तकल्लुफ़ म-गुज़र हेच
ज़ीरा कि हराम-अस्त दरीं कू-ए-तकल्लुफ़
सूफ़ियों के मार्ग में कभी बनने का प्रयत्न मत करना।
कारण कि इस मार्ग में बनना बहुत ही बुरा है।
दर इश्वः-ए-ख़्वेशी तू व ईं मायः न-दानी
ऐ दोस्त तुरा अज़ तू तूई तुस्त तख़ल्लुफ़
तू अपने चोचलों और फ़रेबों को नहीं छोड़ता है।
ऐसा ज्ञात होता है कि सिर से पैर तक स्वार्थ में फँसा हुआ पड़ा है।
राहेस्त हक़ीक़त कि दरू नीस्त तकल्लुफ़
ज़िन्हार मकुन दर रह-ए-तहक़ीक़ तवक़्क़ुफ़
ईश्वरीय वास्तविकता का मार्ग बहुत ही बड़ा है।यदि इस मार्ग में तुझे आगे बढ़ना है तो सावधान होकर चलना। मार्ग में विश्राम करना उचित नहीं है।
ता-चंद हमी ख़्वाही मिनहाज ब-मे'राज
एहया-ए-उलूम-ए-दीं बा-शरह-ए-तअ'र्रूफ़
तू कब तक उन्नति के मार्ग का इस प्रकार इच्छुक रहेगा,
कि अपने को प्रसिद्ध करने के लिए धार्मिक विद्याओं को जीवित रखेगा।
मी-न-शिनवद इमरोज़ 'सनाई' ब-हक़ीक़त
ब-गिरफ़्त-ओ-असरार-ए-रह-ए-इश्क़़ व तअ'न्नुफ़
सनाई आज तेरी जाँच पड़ताल सुनेगा भी नहीं
क्योंकि वह दृढ़ता के साथ अपने को मिटाने का मार्ग ग्रहण कर चुका है।
गर ज़ीं कि अगर न-शिनवी ऐ दोस्त अज़ीं पस
बर शाहिद-ए-यूसुफ़ न-कुनी क़िस्स:-ए-यूसुफ़
मित्र, यदि इस बात को तुम इस समय ध्यान से सुन लो तो
फिर यूसुफ़ के प्यारे के सामने कभी यूसुफ़ का नाम तक न लो।
- पुस्तक : दीवान-ए-सनाई ग़ज़नवी (पृष्ठ 336)
- रचनाकार : हकीम सनाई
- प्रकाशन : इंतिशारात-ए-सनाई, ईरान (1983)
- संस्करण : 7th
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