अज़ मोहब्बत तल्ख़-हा शीरीं शवद
वज़ मोहब्बत मिस्स-हा ज़र्रीं शवद
प्रेम के कारण कड़वी वस्तुएँ मीठी हो जाती हैं।
प्रेम के स्वभाव के कारण ताँबा सोना (स्वर्ण) बन जाता है।
अज़ मोहब्बत दुर्द-हा साफ़ी शवद
वज़ मोहब्बत दर्द-हा शाफ़ी शवद
प्रेम ही से तलछट स्वच्छ बन जाती है।
प्रेम ही से समस्त रोग अच्छे मा’लूम पड़ते हैं (दुखों में चैन मिलता है)।
अज़ मोहब्बत ख़ार-हा गुल मी-शवद
वज़ मोहब्बत सिरका-हा मुल मी-शवद
प्रेम से कंटक पुष्प के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं
और प्रेम ही से सिरके सुरा बन जाते हैं।
अज़ मोहब्बत दार तख़्ते मी-शवद
वज़ मोहब्बत बार बख़्ते मी-शवद
प्रेम ही से शूली का तख़्ता राज्य सिंहासन बन जाता है
और प्रेम ही से भार सौभाग्य बन जाता है।
अज़ मोहब्बत सिज्न गुलशन मी-शवद
बे-मोहब्बत रौज़ः गुलख़न मी-शवद
प्रेम से कारागृह उद्यान बन जाता है।
प्रेम के बिना उद्यान भाड़ बन जाता है।
अज़ मोहब्बत नार नूरे मी-शवद
अज़ मोहब्बत देव हूरे मी-शवद
प्रेम ही से अग्नि प्रकाश बन जाती है।
प्रेम ही से कुरूप सुन्दर प्रतीत होता है।
अज़ मोहब्बत संग रोग़न मी-शवद
बे-मोहब्बत मोम आहन मी-शवद
प्रेम हो तो पत्थर घुलकर तेल बन जाता है।
प्रेम न हो तो मोम लोहा बन जाता है।
अज़ मोहब्बत हुज़्न शादी मी-शवद
वज़ मोहब्बत गुल हादी मी-शवद
प्रेम के कारण रंज व दुख प्रसन्नता के रूप में पलट जाते हैं
और प्रेम ही से भूतप्रेत मार्गदर्शक बन जाते हैं।
अज़ मोहब्बत नीश नोशे मी-शवद
वज़ मोहब्बत शेर मूशे मी-शवद
प्रेम से कष्ट आराम बन जाते हैं।
प्रेम के ही प्रभाव से सिंह एक चूहा बन जाता है।
अज़ मोहब्बत सक़्म सेहत मी-शवद
वज़ मोहब्बत क़ह्र रहमत मी-शवद
प्रेम से रोग स्वास्थ्य बन जाता है।
प्रेम ही से क्रोध दया बन जाता है।
अज़ मोहब्बत मुर्द: ज़िंद: मी-शवद
वज़ मोहब्बत शाह बंदः मी-शवद
प्रेम से मृतक जीवित हो जाता है
और प्रेम से बादशाह ग़ुलाम बन जाता है।
ईं मोहब्बत हम नतीजः-ए-दानिश अस्त
के गजाफ़ा बर चुनीं तख़्तः नशिस्त
यह प्रेम भी विद्या का फल है,
वह व्यर्थ इस प्रकार के सिंहासन पर आरूढ नहीं हुआ।
दानिशे नाक़िस कुजा ईं इश्क़-ज़ाद
'इश्क़ ज़ायद नाक़िस अम्मा बर जमाद
अधूरी विद्या ने ऐसा प्रेम कहाँ उत्पन्न किया।
प्रेम अधूरा पैदा होता है परन्तु बेजान पर (जो अपने प्राणों को प्राण नहीं समझते)।
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