मैं अपने उस मित्र को, जो इस हृदय को प्रसन्न करने वाला है, धन्यवाद देता हूँ, परन्तु शिकायत के साथ। यदि तू प्रणय के भेदों का ज्ञाता है तो इस कथा को आनन्द से सुन।
बे-मुज़द बूद व मिन्नत हर ख़िदमते कि कर्दम
या-रब मबाद कस रा मख़दूम-ए-बे-इ'नायत
मैंने जो सेवा की थी उसका न तो कुछ एहसान ही था और न उसके प्रति कोई कृतज्ञता ही प्रकट की गई थी। भगवान किसी का स्वामी कठोर न हो।
रिंदान-ए-तिश्नःलब रा आबे नमी-देहद कस
गोई वली शनासाँ रफ़्तन्द अज़ींं विलायत
प्यासे उदासियों को पीने के लिये कोई थोड़ा पानी भी नहीं देता है। मानो उन सिद्ध पुरुषों को परखने वाले इस देश में है ही नहीं।
दर ज़ुल्फ़ चूँ कमंदश ऐ दिल म-पेच की-आँ-जा
सर-हा बुरीदः बीनी बे-जुर्म-ओ-बे-जनायत
ऐ हृदय। देख सँभल जा और उसकी काली अलकों के जाल में मत फँस। वहाँ पर सैकड़ों निरपराधियों के सिर कटे हुए मौजूद हैं।
चश्मत-ओ-ग़म्ज़: मा-रा ख़ूँ रेख़्त मी-पसन्दी
जाना रवा न-बाशद ख़ूँ-रेज़ रा हिमायत
तेरी आँख ने अपनी मानलीला दिखला कर हमको मार डाला है, परन्तु तू इस कार्य को बुरा नहीं समझता है। ऐ जान। हत्यारों की सहायता करना उचित नहीं है।
दर ईं शब-ए-सियाहम गुम-गश्त राह-ए-मक़सूद
अज़ गोश:ई बरूँ-आई ऐ कौकब-ए-हिदायत
इस अंधेरी रात में अपने लक्ष्य पर पहुँचाने वाले मार्ग से भटक गया हूँ। ऐ मार्ग-दर्शक तारे। तू ही किसी कोने से निकल कर मुझे ठीक मार्ग पर पहुँचा दे।
अज़ हर-तरफ़ कि रफ़्तम जुज़ वह्शतम न-यफ़ज़ूद
ज़िन्हार अज़ीं बयाबाँ वीं राह-ए-बे-निहायत
मैं चारों तरफ़ फिर आया परन्तु भटकने के अतिरिक्त हाथ कुछ भी नहीं आया। अब इस बीहड़ मार्ग से पनाह माँगता हूँ।
ईं राह रा निहायत सूरत कुजा तवाँ बस्त
कश सद-हज़ार मंज़िल बेश-अस्त दर बिदायत
जिस मार्ग के आदि में ही सैकड़ों मंज़िलें पार करने को हैं, उसके अन्त के विषय में भला क्या कहा जा सकता है।
ऐ आफ़्ताब-ए-ख़ूबाँ मी-जोशद अंदरूनम
यक साअ'तम ब-गुंजाँ दर साय:-ए-इनायत
ऐ सुन्दरियों के सूर्य। मेरा हृदय उबाल खा रहा है। उसे एक क्षण भर के लिये अपने साथ लेकर शान्त कर दो।
हर-चंद ब-रू-ए-आबम रू अज़ दरत न ताबम
जौर अज़ हबीब-ए-ख़ुश-तर कज़ मुद्दई' रिआ'यत
तू चाहे जितने अत्याचार मेरे साथ कर और मेरी प्रतिष्ठा में बट्टा लगा परन्तु मैं तेरे दरवाज़े से मुख न मोडूँगा, क्योंकि मित्र का अत्याचार शत्रु की कृपा से बढ़कर होता है।
इश्क़त रसद ब-फ़रियाद गर ख़ुद ब-सान-ए-'हाफिज़'
क़ुरआँ ज़े-बर ब-ख़्वानी दर चार-दह रिवायत
प्रेम तेरी सहायता उसी अवस्था में करेगा जबकि तू क़ुरआन पढ़नेवालों के समान कुरआन को चौदह रवायतों के साथ ज़ुबानी पढ़ेगा।