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'इश्क़ आमद मज़हर-ए-हक़ आश्कार

अहमद जाम

'इश्क़ आमद मज़हर-ए-हक़ आश्कार

अहमद जाम

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    'इश्क़ आमद मज़हर-ए-हक़ आश्कार

    नीस्त ग़ैरे जुज़ कमाल-ए-किर्दगार

    इ’श्क़ ही ख़ुदा की सच्चाई है इस के अ’लावा

    और किसी चीज़ में ईश्वरीय संपूर्णता नहीं है

    दर हम:-सूरत यके मा'नी ब-बीं

    वीं हम:-सूरत ब-मा'नी आश्कार

    सारी सूरतों में एक ही अर्थ नज़र के सामने है

    ये तमाम सूरतें उसी अर्थ में प्रकट हैं

    सुरतम मा'नीस्त मा'नी सुरतस्त

    सूरत-ओ-मा'नी यके बीं नक़्श-ए-यार

    मेरी सूरत अर्थ है और अर्थ सूरत है

    मा’शूक़ की निशानी को सूरत और अर्थ की एक ही शक्ल समझो

    वहुवा-मअ'कुम रम्ज़-ए-हक़ अस्त बिल-यक़ीं

    रम्ज़-ए-हक़ रा हम ब-मअ'नी पाएदार

    निःसंदेह ख़ुदा की सच्चाई व-हु-व मअ’कुम (वह तुम्हारे साथ है) ही है

    ख़ुदा की सच्चाई को भी अर्थ का हिस्सा समझो

    नहनो-अक़रब गुफ़्त दर मा'नी ख़ुदाए

    राज़-ए-हक़ रा दर-हक़ीक़त गोश-दार

    ख़ुदा ने मा’नी के अंदर ही नहनु अक़रब (हम क़रीब हैं) कहा

    ख़ुदा की सच्चाई की तरफ़ ध्यान दो

    'अहमदी' चूँ ज़ात-ए-हक़ रा नीस्त ग़ैर

    ईं रुमूज़-ए-सिर्र-ए-हक़ ज़ू गोश-दार

    ‘अहमद’ ईश्वरीय सच कोई और नहीं है

    इसलिए हक़ के इन रहस्यों से बाख़बर रहो

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